#China: क्या शी जिंगपिंग अपनी पकड़ खो रहे हैं ?

(Binay Kumar Singh जाने माने कॉलम लेखक हैं, आप इनतक Twitter: @BinayBharat से पहुंच सकते हैं, ये विचार लेखक के निजी विचार हैं)

#Xi Jinping: चीन में इस महीने में, ‘tomb sweeping festival’, के दौरान, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के नेता और पूर्व चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ ने मकाऊ हेराल्ड में अपनी’ माँ ‘पर एक व्यक्तिगत लेख लिखा। उस लेख में, जियोबाओ ने अपनी मां के बारे में बताया कि किस तरह उन्होंने चीन के सबसे मुश्किल समय में उन्हें पाला पोसा और इस काबिल बनाया कि वो यहां तक पहुंचे।

जियाबोओ के इस लेख को बाद में चीनी सोशल मीडिया पर खूब चलाया और इस चर्चा पूरे देश में होने लगी। लेकिन फिर अचानक ये लेख सभी जगह से गायब हो गया। लेकिन इससे ये पता चलता है कि सीसीपी के अंदर कितनी राजनीति हलचल चल रही है। शी जिनपिंग की तानाशाही और उसके बढ़ते प्रतिबंधों के बारे में पता चलता है। चलिए चीन के बारे में कुछ बिंदुओं पर ध्यान देतें हैं।

सवाल ये है कि वेन जियाबाओ जैसे पार्टी के वरिष्ठ सदस्य और पूर्व राष्ट्रपति को मकाऊ हेराल्ड जैसे छोटे प्रकाशन में अपना लेख क्यों प्रकाशित करवाना पड़ा? कुछ विश्लेषकों का मानना है कि मकाऊ हेराल्ड एक छोटा पेपर है, लिहाजा इस पेपर पर सरकार की नज़र कुछ थी। इसी वजह से वेन जियाबाओ ने इस प्रकाशन में अपना लेख छपवाया। ये बात दिखाती है कि चीन में कितनी’ स्वतंत्रता’ और शी के चीन में प्रेस को कितनी अनुमति है। वेन खुद पहले सेंसरशिप का निशाना रह चुके हैं। फरीद जकारिया के साथ उनका सीएनएन साक्षात्कार पूरे चीन में सेंसर किया गया था, क्योंकि उन्होंने ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के बारे में बात की थी!

हालांकि यह लेख (माँ) हालांकि काफी हद तक सेल्फ-सेंसर किया गया हुआ था और इसमें ऐसा कुछ भी नहीं था कि जिससे शी जिंग पिंग और उनके लोगों को कुछ परेशानी होती। लेकिन ये लेख उन लोगों में खासा पॉपुलर हो गया जोकि ‘असंतुष्टों’ हैं। बस यही कारण शी और सीसीपी के साथियों को परेशान करने के लिए काफी था। एक बड़ी बात और है कि जिस तरह से तुरंत ही इस लेख को सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्म से गायब कर दिया। उससे पता चलता है कि शी जिंगपिंग का सिस्टम कितनी तेज़ी से काम करता है।

इस पूरे वाक्ये का एक दिलचस्प पहलू ये भी है कि यहां कोई ये सोच भी नहीं सकता कि कोई बड़ा नेता कोई लेख लिखेगा और उसपर सेंसरशिप लग जाएगी। चीन की पार्टी का केंद्रीय प्रचार विभाग किसी भी मुद्दे पर कितनी तेज़ी से ना सिर्फ फैसला लेता है। बल्कि उसपर तुरंत और बेहतर तरीके से अमल भी होता है।

इसलिए, आश्चर्य की बात नहीं है कि चीन में दुनिया के सबसे ज्य़ादा पत्रकार जेल में हैं। इसलिए चीन में मीडिया में जो भी बात होती है वो सरकार के हिसाब से तय लाइनों में ही होती है और ये लाइन खुद शी ने 2018 के बाद तय की है।

न्यूलाइंस इंस्टीट्यूट की मार्च 2021 की गैर-राजनीतिक अध्ययन की अपनी रिपोर्ट में बताया है कि किस तरह से चीन की सरकार ने  उइगरों का नरसंहार किया है और शी की सीसीपी ने इस शक्तियों का प्रयोग किया है। हालांकि ये रिपोर्ट जरूर एक अच्छी शुरूआत है।

शी और सीसीपी ने उइगर प्रांत में स्थानीय अधिकारियों आधिकारिक तौर पर निर्देश में कहा गया है कि “उनके (उइगरों) की भाषा को खत्म करें, उनके संबंधों को खत्म करें और उनके वंश और जड़ों को खत्म करें। ये निर्देश इस कदर तक अमानवीय थे कि वहां स्थानीय प्रशासन ने वहां के लोगों की जबरन नसबंदी और गर्भपात तो कराया ही है साथ में उनकी धार्मिक शिक्षा को भी दोबारा लिखा और पढ़ाया जा रहा है। न्यूलाइन्स रिपोर्ट के मुताबिक सीसीपी को नरसंहार का दोषी है।

चीन की अमानवीयता का एक अन्य उदाहरण हांगकांग है। जहां यूके के साथ अपने 50 साल के समझौते और शहर में लगातार और बड़े विरोधों के बावजूद CCP ने उन ‘सुधारों’ को जारी रखा है, जिससे चीन ने हांगकांग की लगभग हर चीज को लूट लिया है।

देखा जाए तो चीन का एक शहर, जहां पूरी तरह से स्वतंत्रता थी, ये बात सीसीपी के शीर्ष नेतृत्व को नगवार गुजरी और जो अब हांगकांग में हो रहा है। वो चीन के शीर्ष नेतृत्व के कारण हो रहा है। दुर्भाग्य की बात ये है कि चीन के इन कदमों के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय समुदाय लगभग मूक बना रहा। इसी वजह से चीन को इस तरह के काम करने के लिए खुली छूट मिली। इसके कारण अब चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों को आगे बढ़ा रहा है। वो जहां कोरियाई और ताइवान के इलाकों में फाइटर जेट उड़ा रहा है। वहीं वो फिलीपींस के समुद्री इलाकों में भी घुसपैठ कर रहा है। जापान और ऑस्ट्रेलिया तक इस खतरे को महसूस कर रहे हैं। यूरोप में भी वो देशों को परेशान कर रहा है और भारत के खिलाफ सैन्य अभियान चलाए हुए हैं।

हालांकि अब चीन में बदलाव देखे जा रहे हैं। ख़ासकर कोरोना के कारण जो आर्थिक प्रभाव दुनियाभर में पड़े हैं। चीन उससे अछूता नहीं रहा है। इसके कारण चीन के भीतर भी असंतोष की फुसफुसाहट सुनाई देती है। दूसरा जिन देशों ने चीन के साथ समझौते किए हुए थे। वो भी अब इन समझौतों को बैलेंस करना चाहते हैं। ख़ासकर बीआरआई को लेकर जो समझौते हुए हैं। अगर ये होता रहा तो चीन के आर्थिक हितों को नुकसान के साथ साथ शी के कद पर भी चोट पहुंचेगी। बड़ी बात ये है कि चीन में शी ने अपनी सत्ता को मजबूत किया है। इसके बाद ही बहुत सारे मुद्दों चीन के फैसलों को चीन रणनीति नहीं बल्कि सम्राट शी को खुश करने के लिए चाटुकारिता में उठाए गए कदमों की तरह भी देखा जा सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *