#BurningBengal: चुनाव की आड़ में हो रही है सांप्रदायिक हिंसा, हिंदुओं को बना रहे हैं निशाना

अतुल जोग (संगठन मंत्री, वनवासी कल्याण आश्रम)

भारत के पूर्वी भाग पश्चिम बंगाल महत्वपूर्ण है। इस साल मार्च -अप्रैल में पांच राज्यों के चुनावों में से पश्चिमी बंगाल के चुनाव सबसे ज्य़ादा चर्चा में रहे हैं। चुनाव परिणाम घोषित होने के साथ जैसे जैसे रूझान सामने आने लगे वैसे वैसे तृणमूल कांग्रेस के लोग उन्मादी भीड़ के लोग भाजपा समर्थित गांवो, शहरी इलाकों में आक्रमण करने लगे। ऐसे आक्रमण बंगाल के जिले में कमोबेश प्रभावित होने लगे। मई अंत तक बंगाल के 16 जिले  सबसे ज्य़ादा प्रभावित हुए। दक्षिण चौबीस परगना के 757गांव, उत्तरी चौबीस परगना के 341 गांव, पूर्वी बर्धमान के 624,मेदनीपुर के 421, बीरभूम के 331गांव प्रभावित रहे। ऐसे ही लगभग हर जिले के लगभग100 से ज्यादा गाँव प्रभावित रहे हैं। हिंसा ग्रस्त 3662 गांवों में 40हजार से ज्यादा लोग प्रभावित रहे है। आतंक की शरूआत दुकानों की लूटने, घरों पर आक्रमण करे से हुए, साथ ही आम नागरिकों से मारपीट करना एवं घरों को आग लगा देना इस साथ ही माताओं-बहनों को प्रताडित करना और सामूहिक बलात्कार जैसी घटनाएं भी बड़ी मात्रा में हुई हैं। महिला उत्पीड़न की ऐसी 150घटनाएं सामने आई हैं। हिंसा से जूझ रहे बंगाल में 31 मई तक 34 नागरिकों की हत्या हुई है। इसमें अधिकतर नागरिक अनुसूचित जातियों के थे। साथ ही अनुसूचित जनजाति के भी अपने दो बंधुओं की हत्या गुंडों ने की है। कई स्थानों पर पर घरों को जे सी बी , बुलडोजर लगाकर तोड़ दिया गया। इन सारी घटनाओं से भयग्रस्त होकर जान बचाने हेतु हजारों की संख्या में लोग अपने घर छोड़कर पलायन को मजबूर हो गये। आखिर कोई कितने दिन ऐसे रह सकता है?  दस बीस दिन के बाद जब वह घर वापस लौटे तो फिर उनको डराने धमकाने की घटनाएं सामने आयीं। यह तात्कालिक प्रतिक्रिया नहीं थी, बल्कि ऐसा सुनियोजित और तैयारी के किया गया आक्रमण था। ख़ास बात ये थी कि  तृणमूल कांग्रेस के मुखौटे में मुस्लमानों ने बड़ी संख्या में इस हिंसा में हिस्सा लिया और हिंदुओं पर ही सारे आक्रमण हुए। किसी मुस्लिम बस्ती पर आक्रमण नहीं हुआ। लोकतंत्र में निर्वाचन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। कोई दल, उम्मीदवार जीतेगा तो कोई हारेगा। कोई दल साथ में आएगा तो किसी को विपक्ष की भूमिका का निभानी पड़ेगी। यह स्वभाविक प्रक्रिया है लेकिन कोई एक दल विशेष को मतदान करने के लिए किसी कार्यकर्त्ता या मतदाता को प्रताड़ित करना वह भी सत्तासीन दल के पुलिस प्रशासन के संरणक्ष में यह प्रजातंत्र के लिए खतरे की घंटी है। भारतीय संविधान में हर नागरिक के जीने के अधिकार का भी उलंघघन है। इस हिंसा का शिकार का शिकार केवल हिंदू समाज हो रहा है यह भी सोचने की बात है।  असम, तमिलनाडु, केरल और पांडिचेरी मे भी तो चुनाव हुए तब ऐसी हिंसा केवल बंगाल में ही हो रही है? बंगाल में जनजाति समाज भी रहता है और यह समाज भी इस राजनैतिक हिंसा से अछूता नहीं रहा। दक्षिण बंगाल के उत्तर दक्षिण चौबीस परगना, हुगली, झाडग्राम, पूर्वी वधर्मान एवं बीरभूम जिले प्रभावित हो गए। राजनीति के हिसाब से  दक्षिण बंगाल के 8 अनुसूचित जनजाति विधानसभा क्षेत्र में 7 तृणमूल कांग्रेस के और 1 भाजपा के हिस्से में आयी। उत्तर चौबीस परगना जिले के संदेशखाली इलाके में 22 जनजाति ग्रामों पर आक्रमण करते हुए वहां लूटपाट कर घरों को तहस-नहस कर दिया गया। कई स्थानों पर बुलडोजर लगाकर भी घरों को तोडा गया। महिलाओं पर भी अत्याचार किया गया। ये सारे कारनामे शाहजहाँ शेख नाम के गुंडे के नेतृत्व में हुए हैं। दक्षिण चौबीस परगना के गोसाबा इलाके में भी जनजातिय गांवो पर आक्रमण किया गया है हुगली जिले में धानीखाली के आसपास के 9 गांवों पर आक्रमण कर वहा 21 घरों को जलाया गया था। मुकुंदपुर ग्राम के कोडा जनजातिय इलाके में के श्री शुभम मोदी की गर्भवती पत्नी के साथ घसीटते हुए बलात्कार किया गया। इससे बचने के लिए जब वो भागी तो उसके पेट का बच्चा मर गया। पूर्वी बर्धमान जिले के औसग्राम के पास देवसाना गाँवके अकडा टोला में 16 जनजातिय परिवार रहते हैं। यह ग्राम चारों ओर से मुस्लिम आबादी से घिर हैं। तृणमूल कांग्रेस के चुनाव जीतने के बाद इस गांव पर मुस्लमानों ने आक्रमण किया और सभी घरों को जला दिया तथा सोम हांसदा नाम के एक जनजाति की हत्या भी कर दी गई। झाडग्राम जिले के बीनपुर विधानसभा में किशोर मांडी नाम के 27 साल के संथाल युवक को भी अपनी जान गंवानी पड़ी । बीरभूम जिले के नाणूर एवं बोलपुर के पास के अनेक जनजाति गांवों पर भी आक्रमण किए , वहां भारी तोड़फोड़ भी की गई।

दक्षिण और उत्तरी दिनाजपुर जिले के इताहार और बरबीटा गांव पर गुंडों ने आक्रमण करके 18 घरों में तोड़फोड़ एवं लूटपाट की गयी। दक्षिण दिनाजपुर जिले के कुमारगंज विधानसभा क्षेत्र में सुखदेवपुर पंचायत के पाटन ग्राम के फराका टोले में 3 मई को समाज विरोधी लोगों ने आक्रमण करते तीन घरों की तोड़फोड़ की। इस टोले के 9 परिवार के सदस्य को जान बचाने हेतु गांव छोड़कर पलायन करना पड़ा। इसी प्रका नुरैल गांव में संथाल समाज के 6 परिवारों पर आक्रमण करते हुए उनके घरों को गिरा दिया गया। हैरानी की बात ये है कि सभी जगह पुलिस मूक दर्शक बनी रही और राज्य सरकार के समर्थन से गुंडागर्दी, आतंक, अराजकता चलती रही। कुछ लोगों ने पुलिस स्टेशन पर जाकर अपनी प्राथिमकFIRभी दर्ज कराने की हिम्मत नहीं जुटाई कुछ लोगों ने पुलिस में एफआईआर दर्ज कराने की कोशिश की तो उनको डरा-धमकाकर चुप करा दिया गया। कई ग्रामों में परवारों को बहिष्कृत किया गया गांववालों के राशनकार्ड, मनरेगा जॉब कार्ड भी छीन लिए गए। कई गांवों में दुकानदारों को बताया गया कि चिन्हित परिवारों को कोई सामान नहीं बेचना एक प्रकार से उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया।

जनजातिय इलाकों में ईसाई मिशनरियां भी मुस्लमानों के साथ मिलकर हिंदू प्रताडना को समर्थन दे रहीं है। असामाजिक तत्व कृषि जमीन एवं जीवन यापन के अन्य साधनों पर पर डरा धमकाकर अतिक्रमण कर रहे हैं।  बंगाल में सरकार की प्रायोजित यह अराजकता 2 मई से चल रही है जो थमने का नाम ही नहीं ले रही है।

यह बंगाल की अशांति, हिंदू समाज की असुरक्षा एवं जनजाति समाज के ऊपर मंडराता खतरा केवल बंगाल की समस्या नहीं है, वरन पूरे देश की समस्या है। ऐसी समस्या जो संविदान प्रदत नागरिकों के जीने के अधिकारों को ही समाप्त कर दे। जो समाज में विभेद, वैमनस्य पैदा करे। भारत की अखंडता को चुनौती दे। ऐसे स्थित में हर भारतीय नागरिक का कर्तव्य है कि वह बंगाल के सच को जाने। वहां के समाज के हिंदू समाज के साथ और विशेषकर जनजाति समाज के साथ खड़ा हो। इनके साथ हम खड़े है यह बताए। लोकतंत्र की रक्षा करें। नागरकों के सवैधानिक अधिकारों की रक्षा करें। केंद्र सरकार एवं माननीय राष्ट्रपति जी को आवाहन करें कि संविधान के प्रावधानों का उचित उपयोग करते हुए वह बंगाल में स्थापित करें।

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