#Exlusive: पहाड़ों पर ज़मीन खरीदने का चल रहा घोटाला?

हरेंद्र नेगी

उत्तराखंड में जहां पलायन से गांव के गांव खाली हो गए हैं, वहीं दूसरी ओर पिछले कुछ सालों से मैदान के लोग पहाड़ों में अपना आशियाना बना रहे हैं। अगर हम उत्तराखण्ड़ का पिछले 5 सालों का जमीन खरीदने का रिकार्ड देखे तों बाहरी प्रदेशों के लोगों ने जमीन की खरीद फरोखत खूब कि हैं इसका मुख्य कारण पहाड़ में हो रहे पलायन को भी माना जा रहा है। कोरोना महामारी के बाद पहाड़ में भूमि खरीदने के लिए मैदानी इलाकों के लोगों की संख्या में भारी इज़ाफ़ा देखने को मिल रहा है। ऐसा अचानक ही हुआ है। इस हालात में पहाड़ की संस्कृति बचाने के लिए उत्तराखंड में एक सशक्त कानून बनाने के पक्ष में एक अभियान शुरू कर दिया है।

पलायन और राज्य की संस्कृति, बोली बचाने वाली संस्था के संयोजक और समाजसेवी रतन सिंह असवाल ने बताया कि राज्य में तत्काल ही एक सशक्त भूमि कानून की जरूरत है। कोरोना महामारी के दौरान उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों के दूरदराज गांवों में भी बाहरी प्रदेश के लोगों द्वारा जमीने खरीदने की कोशिश कर रहे हैं। यह भविष्य में पहाड़ के सामाजिक ताने बाने संस्कृति व बोली.भाषा के लिए खतरे का कारण बन सकता है। इसके चलते राजनीतिक प्रतिनिधित्व के भी प्रभावित होने का अंदेशा है। 250 मीटर भूमि खरीदने के नियम के बावजूद बड़ी चतुराई से खरीदार, पटवारी,लेखपालों और रजिस्ट्रार आदि की मिलीभगत से एक ही परिवार के दो या दो से अधिक सदस्यों के नाम से बड़ी जमीनें बेची और खरीदी जा रही हैं। इस मिलीभगत के कारण पहाड़ के गांवों में बड़े पैमाने पर कृषि भूमि पर बाहरी लोगों का स्वामित्व होने लगा है।
पलायन एक चितंन के संयोजक असवाल ने कहा कि कोरोना के बाद मची इस होड़ के बाद अब समय आ गया है कि उत्तराखंड में भी हिमाचल या पूर्वोत्तर के राज्यों की तरह कृषि भूमि की खरीद फ़रोख्त के कड़े नियम लागू किए जाएं। यदि राज्य के राजनेता और नीति नियंता प्रदेश की तराई अथवा मैदान को लेकर ऐसे कानूनों को लागू करने में सियासी जोखिम समझते हों तो कम से कम नौ पर्वतीय जनपदों में हर हाल में कृषि भूमि की खरीद फ़रोख्त को नियंत्रित करने के लिए कड़े कानून अब नितांत आवश्यक हो गए हैं। वैसे भी सरकार की पर्वतीय नीति अलग ही रहती है। यदि इसी प्रकार से पहाड़ में जमीनों का स्वामित्व बाहरी लोगों के हाथों में जाता रहा तो पहाड़ की सामाजिकए सांस्कृतिक और राजनैतिक अस्मिता को बचाये रखना सम्भव नहीं होगा। इन हालात में राज्य गठन की मूल अवधारणा और राजनीतिकए सांस्कृतिक एवं आर्थिकी के अस्तित्व के लिए निमित्त इस भगीरथ प्रयास में पलायन एक चिंतन को सभी के मार्गदर्शन और सहयोग की अपेक्षा है। वैसे भी आपदाओं और पहाड़ का चोली दामन का साथ है। इस सच्चाई से इंकार नही किया जा सकता है। इस राज्य को अन्य पर्वतीय राज्यों की तरह एक सशक्त भू.कानून की आवश्यकता इसलिए भी है। जिसमें अधिकतर लोगों ने अपनी राय के साथ साथ इसका समर्थन भी किया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *