Tokyo Olympic : एक गांव जहां पैदा होते हैं ओलंपियन

Wrestling: हरियाणा के छोटे छोटे गांवों परंपरागत कुश्ती का ऐसा जनून है कि जहां एक ओर भारत की पूरी ओलंपिक टीम ही हरियाणा से है, वहीं दूसरी ओर इस राज्य के छोटे से गांव नहरी से टोक्यो ओलंपिक में भाग ले रहे पहलवान रवि दहिया तीसरे ऐसे पहलवान है जोकि ओलंपियन बने हैं।

हरियाण के इस गांव की आबादी करीब सात हजार है और रवि इस गांव के तीसरे ओलंपियन होने जा रहे हैं। इस गांव करीब करीब गांव का हर लड़का कुश्ती या किसी दूसरे खेल से जुड़ा हुआ है। साल 2012 में उनके गांव से ही आने वाले अमित दहिया ने भी ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया था. अमित और रवि दोनों ही पहलवानों ने वर्ल्ड चैंपियनशिप में देश के लिए कई मेडल हासिल किया हैं।

रवि दहिया ओलंपिक में फ्री स्टाइल कुश्ती के 57 किलोग्राम वर्ग में मेडल के लिए खेलेंगे। रवि इस समय शानदार फॉर्म में चल रहे हैं।  हाल ही में रवि दहिया ने अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में बेहतरीन प्रदर्शन किया था और उसके बाद उनकी रूस में ट्रेनिंग भी हुई थी। इसलिए बजरंग पुनिया के साथ साथ रवि दहिया से भी मेडल की उम्मीद है। रवि की हाइट काफी ज्य़ादा है, साथ ही उसके मुकाबले वाले 57 किलोग्राम कैटेगरी के पहलवानों की लंबाई रवि से छोटी है। लिहाजा उनसे पदक की उम्मीद काफी है। बजरंग पुनिया के साथ साथ रवि दहिया से भी मेडल ला सकते हैं।

नहरी गांव से टोक्यो तक का सफर तय करना रवि के लिए चुनौतियों से भरा पड़ा था। एक किसान परिवार में पले बढ़े रवि ने अपने पिता के साथ खेती करने के साथ गांव में ही पहलवानी शुरू कर दी थी। देसी तौर तरीकों से ही उनका सफर शुरू हुआ और मिट्टी में ही पहले तीन चार साल ट्रेनिंग के बाद छत्रसाल स्टेडियम पर रवि ने महाबली सतपाल सिंह से ट्रेनिंग हासिल ली थी। ये वहीं अखाड़ा है, जहां से देश के बेहतरीन खिलाड़ी निकले हैं।

गांव का हर लड़का कुश्ती के लिए जूनूनी

इस गांव में करीब करीब हर बच्चा कुश्ती के अखाड़े में जरूर उतरता है। बेशक मैट पर अभ्यास के लिए उसे बहुत दूर जाना पड़ता है। लेकिन मिट्टी के अखाड़े गांव में है। वहां सुबह शाम लड़कों का जमघट आसानी से दिख जाएगा।  

रवि के पिता राकेश दहिया के मुताबिक ने कहा, ”नहरी गांव के बच्चों में कुश्ती को लेकर जुनून काफी ज्यादा है, लेकिन सबको 60/70 किलोमीटर दूर जाकर अभ्यास करने का मौका नही मिल पाता है। इसलिए बहुत सारे बच्चें ऐसे है जिनको बढ़िया ट्रेनिंग नहीं मिल पाती। गांव में रवि जैसे कई पहलवान हैं, जो ट्रेनिंग नहीं मिलने की वजह से दबकर रह जाते हैं। अगर सरकार यहां कोई ट्रेनिंग अकादमी शुरू करें तो यहां और भी बड़े खिलाड़ी निकल सकते हैं। उन्होंने कहा, ”रवि का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट ये है कि वो आखिर तक हार मानने को तैयार नहीं होते है।”

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