ICU@Home: जब मरीज़ों का दबाव बढ़ा तो घरों में ही बनाया ICU, 6हज़ार मरीजों की जान बचाई

देश में कोरोना के कारण सबसे ज्य़ादा दबाव डॉक्टर्स पर पड़ा है, लगातार मरीजों के बीच रहकर उनकी सेवा करने वाले डॉक्टर्स अब नए नए तरीकों से कोरोना मरीजों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। कोरोना की पहली वेव के बाद देश में कुछ डॉक्टर्स ने मिलकर ICU at Home जैसी सुविधाएं मुंबई से शुरू की। इसके बाद दूसरी लहर में इस सुविधा ने ना केवल 6 हज़ार से ज्य़ादा मरीजों को कोरोना के मुश्किल समय में उनको ऑक्सीजन जैसी सुविधा मुहैया कराई, बल्कि विशेषज्ञ डॉक्टर्स की एक टीम भी उनके लिए खड़ी कर दी।

Dr. Dharmendra Kumar

डॉक्टर्स 365 के चेयरमैन डॉ. धर्मेंद्र कुमार ने theekhabar.com के संपादक दीपक उपाध्याय से ख़ास बातचीत की।

सवाल: डॉ धर्मेंद्र, क्यों स्थापित करनी पड़ी आपको 365?

डॉ. धर्मेंद्र कुमार: 365 दिन, 24 घंटे, आज सभी को मालूम है कि भारत का जीडीपी बहुत ही नीचे है। जीडीपी बढाने के लिए लोगों का स्वास्थ्य बेहतर होना चाहिए। बहुत कम लोगों को मालूम है कि दुनिया में सबसे ज्यादा मौत कुपोषण से भारत में होती है। इसी तरह खुद डॉक्टरी करने से भी बहुत ज्यादा मौत होती है। हम दुनिया के जनसंख्या के मामले में दूसरे नंबर पर हैं। चीन जनसंख्या में हमसे आगे है, लेकिन वो स्वास्थ्य पर ज्यादा खर्च करता है। हर इंसान जो पैदा होता है। वो सबकुछ होता है। उस इंसान को धीरूभाई अबानी, टाटा या अंबानी या फिर अमिताभ बच्चन बनने के लिए मौका मिलना चाहिए। अगर हम धरती पर आए हैं और हम पैदा हुए हैं तो हमें मुक्कमल जिंदगी मिलनी चाहिए। इसको देखते हुए 1998 में एक एड्स रिसर्च फाउंडेशन शुरू किया और धीरे धीरे मेडिकल कैंप लगाने शुरू किए। लेकिन लोगों की मांग और जनसंख्या को देखते हुए हमने इसको बड़ा करने की सोची। बाद में हमने फार्मा कंपनियों और अस्पतालों के साथ टाईअप किया और उनसे मेडिकल इंफ्रा और दवाएं लेनी शुरू की। कुछ समय के बाद कॉलेज के लड़के लड़कियों का सहयोग भी मिलने लगा। बाद में हमने बड़े आकार का इंफ्रा खड़ा कर दिया और लाखों लोगों का इलाज कर पाएं।

सवाल: किस तरह का ट्रीटमेंट इन कैंप में आप लोगों को देते हैं।

डॉ धर्मेंद्र कुमार : आम तौर पर कैंप्स में कुछ बुखार वाले होते हैं, कुछ समान्य बीमारियों वाले होते हैं तो 10-12 परसेंट केस लंबे ट्रीटमेंट वाले केस होते हैं। जिनको हम आसपास के अस्पतालों के साथ टाईअप करा देते हैं, इपर उनको मॉनिटर भी करते हैं। अगर उन्हें कुछ समस्या आती है तो उसको भी ठीक करने की कोशिश करते हैं। इसी तरह सर्जिकल केस में करते हैं, हम सर्जरी भी कराते हैं। हमारी कोशिश होती है कि रोगी का रोग बढ़े नहीं इसके लिए हम कोशिश करते हैं। अभी तक पिछले 23 सालों में हम 3.55 करोड़ मरीजों का इलाज कर चुके हैं। हमने करीब 29 हज़ार से ज्य़ादा मेडिकल कैंप पूरे देश में लगाए हैं। जहां जरूरत है, वहां हम कैंप लगाते हैं। बड़ी संख्या में डॉक्टर्स हमारे साथ काम करते हैं। रोज़ 50 से ज्य़ादा मेडिकल कैंप हम लगाते हैं।

सवाल : आईसीयू एट होम कैसे काम करता है

डॉ. धर्मेंद्र : पहला वेव जब आया तो हमने देखा कि ऑक्सीजन की कमी की वजह से बहुत से लोगों की मौत हुई थी। अस्पताल भरे हुए थे, लोगों को भर्ती करने की जगह नहीं बची थी, लेकिन मरीज आए जा रहे थे। अब हमने सोचा कि बीच का रास्ता क्या है, आज सारी सुविधाएं घर पर डिजिटली मिल जाती हैं। यहीं सोचकर हमने इलाज को लोगों के घरों तक लेकर जाने की सोची। इसलिए हमने 365 कपनी बनाई और इसका आईसीयू एट होम बहुत ही यूजफुल एक प्रोग्राम है। लेकिन कोरोना काल में लोगों को इससे काफी फायदा हुआ है। डॉक्टर 365 की टीम ने 6 हज़ार से ज्य़ादा घरों में आईसीयू ट्रेंड नर्स, ऑक्सीजन सुविधा और बैकअप में बाइपैक, आईसीयू मॉनिटर तो पहुंचाया ही। साथ में हमारे डॉक्टर दो बार विडियो कांफ्रेंस से मरीज को देख रहे थे। साथ ही बड़ी बात ये थी कि हमने मरीज की पुरानी बीमारी को देखते हुए एक्ट किया। अगर किसी मरीज को हार्ट से संबंधित किसी तरह की परेशानियां थी तो उसके हिसाब से हमने स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की टीम लगाई। अगर किसी की किडनी में समस्या थी तो किडनी की बीमारियों को देखते हुए कोरोना का ट्रीटमेंट दिया। इसलिए हम काफी सफल हुए। हमने ऑनलाइन मॉनिटर करते हुए 6 हज़ार से ज्य़ादा मरीजों को ठीक किया।

सवाल: क्या सिर्फ कंपनियां ही इस प्रोग्राम को ले सकती है?

डॉ. धर्मेंद्र कुमार: ऐसा नहीं है कि आम व्यक्ति भी आईसीयू एट होम प्रोग्राम को ले सकता है। हमने पीएसयू में भी हमने आईसीयू सेट अप किया। ओएनजीसी के लिए अंक्लेश्वर में 10 बेड का अस्पताल बनाया था। ओएनजीसी में हमने नवंबर से अभी तक काम किया और अभी तक कोरोना से वहां एक भी मौत हमने नहीं होने दी। हमारे डॉक्टर ने गुजरात, दिल्ली, बैंग्लोर और मुंबई में काफी काम किया।

सवाल: एक आईसीयू एट कितना खर्च आता है

डॉ. धर्मेंद्र कुमार: एक आईसीयू लगाने के लिए हम पहले मरीज की रिपोर्ट देखते हैं। उसी को देखते हुए 8-10 हज़ार रुपये प्रति दिन का खर्चा आता है। अगर जरूरत पड़ती है तो बाकी सुविधाएं देते हैं। उनका अतिरिक्त खर्चा आता है। इसमें एक नर्स 24 घंटे रहती है। दो डॉक्टर दिन में दो बार मरीज का हाल जानते हैं। जिस तरह की जरूरत पड़ती है। वैसा ही एक्ट करते हैं।

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