लॉकडाउन में कर्ज़ कि किस्त ना चुकाने के विकल्प पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई है। कोर्ट ने इसपर सरकार से 7 दिन में हलफनामा देकर ब्याज माफी की गुंजाइश पर स्थिति साफ करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कहा है कि “आरबीआई की बजाए खुद फैसला ले सकती है। डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत सरकार बैंकों को ब्याज पर ब्याज वसूलने से रोक सकती है।” दरअसल बैंकों के लॉकडाउन पीरियड में ईएमआई वसूलने को लेकर कोर्ट में मामला आया है। मामले की अगली सुनवाई 1 सितंबर को होगी।
दरअसल कोरोना और लॉकडाउन के कारण लोगों को राहत के नाम पर पर आरबीआई ने मार्च में लोगों को मोरेटोरियम यानी लोन की ईएमआई 3 महीने के लिए टालने की सुविधा दी थी। बाद में इसे 3 महीने और बढ़ाकर 31 अगस्त तक के लिए कर दिया गया। आरबीआई ने कहा था कि लोन की किश्त 6 महीने नहीं चुकाएंगे, तो इसे डिफॉल्ट नहीं माना जाएगा। लेकिन इस दौरान बैंक ब्याज पर ब्याज ले रहे हैं। यानि जिस पीरियड में आम ग्राहक ने किश्त नहीं चुकाई है। उस पीरियड के मूल और ब्याज दोनों पर ब्य़ाज वसूला जा रहा है। इसलिए ब्याज की शर्त को कुछ ग्राहकों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उनकी दलील है कि मोरेटोरियम में इंटरेस्ट पर छूट मिलनी चाहिए, क्योंकि ब्याज पर ब्याज वसूलना गलत है। एक वादी की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने बुधवार की सुनवाई में यह मांग भी रखी कि जब तक ब्याज माफी की अर्जी पर फैसला नहीं होता, तब तक मोरेटोरियम पीरियड बढ़ा देना चाहिए।
हालांकि इस मामले पर सरकार का रवैया साफ नहीं है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्कट में कहा कि सरकार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ बातचीत कर रही है। इससे पहले भी कोर्ट ने सरकार को इस मामले पर झाड़ लगाई थी। मामले की अगली सुनवाई 1 सितंबर को होगी।