Samajwadi Party: उत्तर प्रदेश चुनावों में एक बार फिर समाजवादी पार्टी के गठबंधन करने वाली पार्टियों की हालत खराब हो गई। दूसरी ओर जिन पार्टियों ने बीजेपी के साथ चुनाव लड़ा, वो ज्य़ादा सीटें जीत पाई।
RLD को मिली 24 प्रतिशत सफलता
विधानसभा चुनावी आंकड़ों के मुताबिक समाजवादी पार्टी के चार सहयोगियों ने 57 सीटों पर अपने-अपने चुनाव चिन्हों पर चुनाव लड़ा, लेकिन वो सिर्फ 14 सीटें ही जीत सकीं। यानि 24.56 प्रतिशत ही सफलता इन सहयोगी दलों को मिल पाई।
दूसरी ओर, भाजपा के दो सहयोगियों ने 27 सीटों पर चुनाव लड़ा और उनमें से 18 पर जीत हासिल कर ली। जोकि जीत के प्रतिशत के तौर पर 66.66 प्रतिशत रहा।
समाजवादी पार्टी के सहयोगियों में, राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) ने सबसे अधिक 33 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन जीत वो सिर्फ आठ सीटों पर कर पाई। वो भी उस पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां कहा जा रहा था कि बीजेपी की स्थिति खराब रहेगी। किसान आंदोलन का असर इस इलाके में सबसे ज्य़ादा था। मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) और अपना दल (कामेरावाड़ी) ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था, इन पार्टियों को उम्मीद थी कि वो गैर-यादव जातियों को साथ लेकर आएंगे। ख़ासकर ओबीसी जातियां समाजवादी पार्टी के साथ आएंगी, लेकिन हुआ इसके उलट।
बीजेपी सहयोगी बनी राज्य में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी
एसबीएसपी 2017 में भाजपा की सहयोगी थी, जब उसने आठ सीटों पर चुनाव लड़ा और 50 प्रतिशत की सफलता दर के साथ चार पर जीत हासिल की। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उसने गठबंधन छोड़ दिया।
2022 के चुनावों में, SBSP ने समाजवादी पार्टी के साथ 18 सीटों पर चुनाव लड़ा और केवल छह सीटें जीतीं। बड़ी बात ये है कि राजभर के बेटे अरविंद राजभर वाराणसी जिले के शिवपुर से हार गए। हालांकि ओम प्रकाश राजभर चुनाव जीते हैं।
कुर्मी वोटों पर ख़ासा प्रभाव रखने वाले अपना दल (कामेरावाड़ी) ने सपा के साथ गठबंधन में चार सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन सभी हार गए। पार्टी अध्यक्ष कृष्णा पटेल प्रतापगढ़ से हार गईं।
दूसरी ओर बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली अनुप्रिया पटेल की पार्टी ने 17 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और उनमें से 15 सीटों पर उन्होंने जीत हासिल की है। अपना दल (एस) भाजपा और सपा के बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई है।