हरियाणा में रोहतक में शाम का वक्त है और गरीब बच्चे अपने अपने थैले उठाए हम होंगे कामयाब गाते हुए चले जा रहे हैं। थोड़ी देर बाद ये बच्चे एक पार्क में इक्कठे होते हैं। जहां एक दरी पर बैठकर पढ़ाई शुरू होती है। गरीब कंस्ट्रक्शन मज़दूरों के ये बच्चे पिछले कुछ सालों से इस गांधी स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं। दरअसल पिछले 12 सालों से लगातार सड़क पर चलने वाला ये स्कूल अभी तक सैकड़ों गरीब बच्चों को शिक्षित कर चुका है। हालांकि मान्यता के अभाव में कोई सटिर्फिकेट तो नहीं दे पाता। लेकिन अपना हिसाब किताब और थोड़ा बहुत पढ़ने लायक इन बच्चों को जरूर बना रहा है। इस स्कूल को चलाने वाले समाजिक कार्यकर्त्ता नरेश कुमार बताते हैं कि अब कोशिश है कि इन बच्चों को और बेहतर करने के लिए प्रेरित किया जाए।
दरअसल गांधी स्कूल ने नाम से मशहूर इस स्कूल में सिर्फ मज़दूरों के बच्चे ही पढ़ते हैं। इस अनोखे स्कूल को ना तो राज्य सरकार से कोई सहायता मिलती है और ना ही प्रशासन से कोई मदद हां, इतना जरूर है कि अभी तक किसी स्थानीय प्रशासन ने इन्हें यहां से हटाया नहीं है। इस स्कूल के शुरू होने के बारे में नरेश बताते हैं कि 12 साल पहले एक मज़दूर के बच्चे को चोरी के इल्ज़ाम में सरेआम पिटते देख उन्होंने तय किया कि इन बच्चों को ये पढ़ाएंगे। बस उस दिन से ये स्कूल शुरू हो गया। हालांकि स्कूल का नामकरण खुद बच्चों ने ही किया है।
पिछले 12 सालों से रोज़ शाम को सात बजते ही बच्चे यहां आना शुरू हो जाते हैं और उसके बाद अगले दो घंटे तक वो हिन्दी, अग्रेंजी, गणित और सामान्य ज्ञान जैसे विषय पढ़ते हैं। सोशोलॉजी में एम नरेश बताते हैं कि हरियाणा में हजारों की संख्या में दूसरे राज्यों से आने वाले प्रवासी मजदूर भवन निर्माण तथा अन्य विकास के कार्यो में जी तोड़ मेहनत करते हैं। इन प्रवासी मजदूरों को अनेक तरह से सामाजिक व आर्थिक भेदभाव का शिकार होना पड़ता हैं। ऐसे ही इनके बच्चों में शिक्षा की लौ जगाना ही मैंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है। अब तो कई बच्चे ऐसे हैं जोकि डॉक्टर तो कोई बड़ा अधिकारी बनने का सपना देख रहे है। हालांकि अब बाबा मस्तनाथ मठ से इस स्कूल को कुछ सहायता मिलने की उम्मीद है।