#AmericanForces: अमेरिका के इसी साल सितंबर में अफगानिस्तान से पूरी सेना हटा लेने के फैसले से अफगानिस्तान पर एक बार फिर तालिबान का कब्जा हो सकता है। अमेरिका के इस कदम से भारत की आंतरिक सुरक्षा पर गंभीर असर होगा। विशेषज्ञों के मुताबिक अमेरिका के तालिबान को सत्ता सौंपकर वहां से निकलने के बाद अफगानिस्तान टेरर फैक्ट्ररी बन सकता है। जहां से पूरी दुनिया को आतंकवाद की सप्लाई होगी। हालांकि विदेश मंत्रालय ने अभी इसपर बहुत ही नपे तुले शब्दों में कहा है कि वो दे अफगानिस्तान के लोगों की सरकार वहां देखना चाहता है।
अमेरिकी फौज का अफगानिस्तान से जाने को लेकर लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) राज कादियान का मानना है कि, 2001 से पहले अफगानिस्तान पर तालिबान का दबदबा था। इसके साथ अलकायदा भी शामिल था। 9-11 को हुए अमेरिका पर हुए हमले के बाद अमेरिकी की फौजें अफगानिस्तान पहुंची थी। जहां उन्होंने आतंकवादियों पर हवाई हमले किए थे। इससे शुरू में आतंकवादियों पर बहुत दबाव पड़ा था और वो पाकिस्तान की सीमाओं में घुस गए। लगभग 20 सालों से अमेरिकी फौजें अफगानिस्तान में हैं, वहां अमेरिकी सैनिकों की तादाद एक लाख से ज्य़ादा हो गई है। इस दौरान 2400 अमेरिकी और 1.50 अफगान सैनिक तालिबान के साथ लड़ाई में मारे जा चुके हैं। अमेरिका का करीब 2-3 ट्रिलियन डॉलर का खर्चा इस लड़ाई में हो चुका है। पिछले 4 अमेरिकी राष्ट्रपति भी अमेरिकी फौजो को वहां से निकालने की कोशिश में था। लेकिन तब कामयाब नहीं हुए। लेकिन अब जो बाइडेन ने अमेरिकी सेना को वापस बुलाने के लिए तारीख का ऐलान भी कर दिया है। हालांकि इस पूरे मामले में भारत का रोल सीमित है। चुंकि पूरी आशंका है कि वहां तालिबान का राज वापस आ जाएगा। लिहाजा इसका नुकसान भारत को होगा, क्योंकि तालिबान के साथ भारत के साथ रिश्ते अच्छे नहीं रहे हैं। इसका पाकिस्तान को सबसे बड़ा फायदा मिलेगा। आतंकवादियों के साथ पाकिस्तान मिलकर काम करेगा। 11 सितंबर तक भारत तो वेट एंड वॉच की स्थिति में रहना पड़ेगा।
मेजर (रिटायर्ड) अमित बंसल के मुताबिक अमेरिका के अफगानिस्तान से निकलने के लिए भारत को चौकन्ना रहने की जरूरत है। वहां तालिबान है, हक्कानी नेटवर्क के साथ साथ अन्य छोटे छोटे ग्रुप भी है। आज वहां इन आंतकियों को रोकने का काम अमेरिका कर रहा है। लेकिन अमेरिकी फौजों के वहां से निकलने के बाद हक्कानी नेटवर्क काफी मज़बूत होगा। इस नेटवर्क का संबंध दुनिया के सभी आतंकवादियों के साथ तो हैं ही। साथ ही पाकिस्तान की फौज के साथ भी बहुत ही अच्छा संबंध हैं। अगर अमेरिका निकलता है। तो अफगानिस्तान आतंकवादियों की फैक्ट्री बन जाएगा। इससे वहां आतंकवादी ट्रेंड होंगे और उसको दुनियाभर में भेजा जाएगा। तालिबान भारत में गजवा ए हिंद करने के लिए कोशिश करेंगे। ना सिर्फ कश्मीर बल्कि वो पूरे भारत पर आतंकवादी हमले करने के कोशिश करेंगे। इस हक्कानी नेटवर्क से बचने की ज्य़ादा जरूरत है, क्योंकि अमेरिका के निकलते ही ये आंतकवादियों की भर्ती और ट्रेनिंग का काम शुरू करेगा।
रक्षा मामलों के जाने माने पत्रकार ज्ञानेंद्र बरतरिया के मुताबिक अफगानिस्तान से अमेरिका फौजे निकल नहीं रही हैं, बल्कि वो तालिबान को सत्ता सौंप रही हैं। कश्मीर टेरेरिज्म में हमेशा से भर्ती और ट्रेनिंग का काम अफगानिस्तान में होता रहता था। लिहाजा इसपर अभी से तैयारियां करने की जरूरत है कि इसको कैसे रोका जाए।