बीते सोमवार को कई महीनो बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी अपने 12 तुगलक रोड के सरकारी निवास से बाहर आते हुए खुद गाड़ी ड्राइव कर मां सोनिया गांधी के निवास दस जनपथ जाते हुए दिखे। उन्होंने अपनी बहन प्रियंका गांधी से मुलाकात की और बागी नेता रहे सचिन पायलट से भी मुलाकात की।दरअसल, राहुल गांधी बीते मई महीने के बाद पहली बार सार्वजनिक तौर पर दिखाई दिए और कई महीनों बाद उनके घर के बाहर टीवी कैमरों का हुजूम दिखाई दिया।
पिछली बार 16 मई को दिखे थे घर से बाहर
राहुल गांधी पिछली बार 16 मई को नई दिल्ली के सुखदेव विहार फ्लाईओवर के नीचे कुछ प्रवासी मजदूरों के साथ उनका हालचाल जानते हुए दिखाई दिए थे। प्रवासी मजदूरों के साथ राहुल गांधी की यह फोटो काफी वायरल हुई थी लेकिन उसके बाद से उन्होंने खुद को ऑनलाइन मीटिंग और ट्वीटर पर सीमित कर लिया।
पीएम मोदी और शाह दिखे कई बार बाहर
राहुल गांधी की रणनीति भाजपा खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से बिल्कुल अलग रही। पिछले 2 महीने में प्रधानमंत्री ने कई बड़े कार्यक्रमों में हिस्सा लिया है जिसमें 5 अगस्त को अयोध्या में राम जन्म भूमि पूजन उत्सव और लेह में 3 जुलाई का दौरा प्रमुख है। इसके अलावा उन्होंने कई कैबिनेट बैठकें भी ली। दूसरी तरफ गृह मंत्री अमित शाह जो 3 अगस्त को कोविड-19 पॉजिटिव हुए थे। पॉजिटिव होने से पहले वह भी कई कैबिनेट बैठकों में शिरकत कर चुके हैं। भाजपा मुख्यालय में जाकर उन्होंने कई राज्यों के लिए वर्चुअल रैलियां भी की। इससे पहले भी 22 जुलाई में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ दिल्ली के नए कोविड-19 अस्पताल का दौरा कर चुके हैं।
सोशल मीडिया पर एक्टिव राहुल
राहुल गांधी ने कोविड महामारी के दौरान सोशल मीडिया पर अपनी गतिविधियां बढ़ा दी है। अप्रैल की शुरुआत से ही राहुल गांधी ने विभिन्न स्वास्थ्य और आर्थिक विशेषज्ञों से वायरस और लॉकडाउन के असर को लेकर वीडियो इंटरेक्शन किया है। इसमें कई बड़े अर्थशास्त्री जैसे रघुराम राजन, अभिजीत बनर्जी, स्वास्थ्य विशेषज्ञ आशीष झा और जोहान गायस्की, उद्योगपति राजीव बजाज और हाल में उन्होंने नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस से ऑनलाइन बातचीत की। जून के आखिरी महीने में राहुल गांधी ने रूसी सोशल मीडिया मैसेज एप टेलीग्राम को ज्वाइन किया। बाद में जुलाई में उन्होंने एक वीडियो सीरीज शुरू की इसका मकसद ” न्यूज़ मीडिया द्वारा चलाए जाए जा रहे नफरत ” से मुकाबला करने का था। इस वीडियो सीरीज में वह मौजूदा राजनीतिक मुद्दों, इतिहास और संकट के बारे में अपने विचार साझा करते हैं। अभी तक इस सीरीज के तीन एपिसोड आ चुके हैं जिसमें भारत चीन के बीच सीमा पर टकराव और नरेंद्र मोदी सरकार की इससे निपटने की रणनीति का मुद्दा प्रमुख है।
महामारी था राहुल के लिए मौका
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस महामारी के दौरान राहुल गांधी के पास मौका था कि वह जनता के पास जाकर उनका भरोसा जीतते और उनको इस बुरे समय में उनके साथ होने का ऐसा एहसास दिलाते। ऐसा करने के बजाय उन्होंने वीडियो इंटरव्यू पर फोकस किया जिसे बड़ी संख्या में लोगों ने पसंद नहीं किया और देखा तक नहीं।
महामारी का बहाना बनाकर राजनेता नहीं हो सकते घर में कैद
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि महामारी का बहाना बनाकर राजनेता खुद को कमरे के अंदर कैद नहीं कर सकते। जनता के बीच जाकर उनकी समस्याओं को दूर करें। राहुल गांधी विपक्ष के नेता है इस लिहाज से उनकी जिम्मेदारी सरकार से ज्यादा बनती थी।
मजदूरों से राहुल के मिलने पर सरकार को लगी थी मिर्ची
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मई में जब वह प्रवासी मजदूरों से सड़क पर जाकर मिले थे तो यह एक अच्छी शुरुआत थी और इससे सरकार को भी जमकर मिर्ची लगी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने तो यहां तक कह दिया राहुल गांधी को प्रवासी मजदूरों का सामान उठाना चाहिए था, उन्होंने उनका टाइम वेस्ट किया है। सीतारमण के इस बयान की आलोचना और राहुल गांधी की सोशल मीडिया और टीवी चैनलों की डिबेट में काफी तारीफ भी हुई थी। लेकिन उसके बाद राहुल गांधी ठप्प पड़ गए और उन्होंने खुद को ऑनलाइन वीडियो तक सीमित कर दिया।
राजनीतिक विशेषज्ञ कहते हैं कि राजनीतिक मुद्दे ट्विटर पर मौजूद रहकर नहीं बनाया जा सकता उसके लिए जमीन पर उतरना पड़ेगा। महामारी के दौरान भी आम आदमी और औरत खतरे के बावजूद अपने घर से बाहर निकल कर रोजी रोटी कमाने के लिए काम पर जा रहे हैं ऐसे में राजनेताओं का महामारी का बहाना बनाकर घर में बैठना पचता नहीं है। यह कोई मायने नहीं रह जाता कि आप सरकार के खिलाफ बड़े बड़े मुद्दे उठा रहे हैं, यह बात मायने रखती है कि आप की जनता के बीच में कितनी मौजूदगी है। राजनीतिक विश्लेषक नोट करते हैं कि राहुल गांधी ऑनलाइन वीडियो के दौरान भी ज्यादातर बातचीत अंग्रेजी में करते हैं जबकि देश के आम आदमी और औरतों को किस भाषा से ज्यादा कोई सरोकार नहीं है और यह भाषा वीआईपी लोगों की मानी जाती है।