जाने एमपी में सफल होने के बाद राजस्थान में क्यों फुस्स हो गया भाजपा का ऑपरेशन लोटस
मध्यप्रदेश में सफल होने के बाद आखिरकार ऐसा क्या हुआ कि भाजपा को राजस्थान में मुंह की खानी पड़ी। दरअसल भाजपा ने ठीक मध्य प्रदेश की तरह राजस्थान में भी रणनीति बनाई थी कि जिस तरीके से ज्योतिरादित्य सिंधिया की मदद से कमलनाथ सरकार गिराई थी, उसी तरह सचिन पायलट की मदद से राजस्थान सरकार को गिराया जाए।
गहलोत ने बॉर्डर कर दिया सील और होटल में लगा दिए जैमर
लेकिन हुआ यह कि सचिन पायलट ने अपने विधायकों को कांग्रेस से तोड़कर मानेसर भेजा तो दूसरी तरफ गहलोत ने भी जयपुर के होटल में अपने विधायकों को बंद कर दिया। दिल्ली जयपुर बॉर्डर सील कर दिया और होटल में जैमर लगा दिए ताकि विधायकों से संपर्क ना किया जाए। इसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा और सचिन पायलट व उसके समर्थक दूसरे विधायकों से संपर्क नहीं कर पाए और सौदेबाजी नहीं हो सकी।
शिवराज की तरह नहीं लिया वसुंधरा को भरोसे में
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि कांग्रेस सरकार को गिराने में बड़ी संख्या में विधायकों का समर्थन चाहिए था जबकि मध्यप्रदेश में सिर्फ 7 विधायकों का ही अंतर था। सबसे बड़ा कारण यह था कि मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार को गिराने में शिवराज सिंह चौहान पहले दिन से ही भाजपा हाईकमान के साथ मिलकर काम कर रहे थे लेकिन राजस्थान में ठीक इसके उलट हुआ जहां पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भाजपा हाईकमान के निर्देश के ठीक उलट काम कर रही थी।
भाजपा के सूत्र कहते हैं कि राजे को विश्वास में नहीं लिया गया था जिसकी वजह से वह नाराज थी सचिन पायलट से जब अशोक गहलोत को सरकार गिराने के लिए बात चल रही थी तब राजस्थान के सिर्फ तीन नेताओं को भरोसे में लिया गया था, जिसमें वसुंधरा शामिल नहीं थी।
हाईकमान ने शेखावत पर किया भरोसा
पार्टी के एक नेता ने बताया कि हाईकमान ने केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत पर जरूरत से ज्यादा भरोसा किया। वह गहलोत कैंप के विधायकों को भाजपा के पाले में लाने में नाकाम रहे।
सूत्रों ने बताया कि योजना थी कि पायलट कम से कम 30 विधायक का समर्थन हासिल करेंगे और बीजेपी को सरकार बनाने में मदद करेंगे लेकिन इस योजना में राजे को भरोसा में नहीं लेने से भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा।
इस पूरे घटनाक्रम के दौरान वसुंधरा राजे चुप बैठी रही लेकिन आखिरकार उन्होंने 18 जुलाई को अपनी चुप्पी तोड़ी और कहा कि राज्य की जनता के साथ यह दुर्भाग्य है कि उसे कांग्रेस को चुनने की कीमत चुकानी पड़ रही है।
वसुंधरा राजे ने दिल्ली में आकर डेरा डाल लिया जबकि अगर उनको भरोसे में लिया जाता तो वह प्रदेश में रहकर इस पूरे ऑपरेशन को अंजाम दे सकती थी लेकिन उन्होंने दिल्ली में आकर भाजपा के बड़े नेताओं के सामने खुद को नजरअंदाज करने को लेकर नाराजगी जताई।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि वसुंधरा राजे राज्य की दो बार की मुख्यमंत्री है। 2018 सत्ता विरोधी लहरों के बावजूद भी विधानसभा में भाजपा को ठीक-ठाक सीटें मिली थी। 2013 में वसुंधरा 165 सीटों की जीत के साथ सत्ता में आई थी जबकि 2018 के चुनावों में वसुंधरा का इतना भारी विरोध के बावजूद गहलोत की कांग्रेस को सिर्फ 107 सीटें ही मिल पाई।
वसुंधरा कैंप खुश
वसुंधरा से जुड़े एक नेता ने कहा कि दिल्ली में बैठे नेताओं को भ्रम हो गया कि कि वह सचिन पायलट और कुछ विधायकों के समर्थन के बलबूते गहलोत सरकार को गिरा देंगे लेकिन अब भ्रम खत्म हो गया है और शायद दिल्ली बैठे नेताओं को समझ आ गया है कि लोग नेता बनाते हैं ना कि हाई कमान।
इससे पहले भी वसुंधरा राजे भाजपा हाईकमान की योजना पर पानी फेर चुकी है। 2018 में गृह मंत्री अमित शाह गजेंद्र सिंह शेखावत को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहते थे लेकिन वसुंधरा ने उनकी नियुक्ति रुकवा दी थी।