आज से श्राध्द शुरू हो गया है। 2 से 17 सितंबर तक पितृपक्ष रहेगा। हालांकि धर्मग्रंथों में कहा गया है कि तीर्थों में जाकर श्राद्ध करने से विशेष पूण्य मिलता है। लेकिन कोरोना के कारण ये संभव नहीं होगा तो अपने घर में ही आप श्राद्ध कर सकते हैं।
अथर्ववेद में कहा गया है कि जब सूर्य कन्या राशि में रहता है, तब पितरों को तृप्त करने वाली चीजें देने से स्वर्ग मिलता है। इन 16 दिनों में पितरों के लिए विशेष पूजा और दान करना चाहिए। ग्रंथों में कहा गया है कि पितृपक्ष शुरू होते ही पितृ मृत्युलोक में अपने वंशजों को देखने के लिए आते हैं और तर्पण ग्रहण करके लौट जाते हैं। इसलिए, इन दिनों में पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, पिंडदान, ब्राह्मण भोजन और अन्य तरह के दान किए जाते हैं।
ग्रंथों के मुताबिक सबसे अधिक पुत्र के हाथों श्राध्द लगते हैं। लेकिन कई बार घर में पुत्र ना होने पर पुत्री को भी श्राध्द करने का अधिकार होता है। मार्कण्डेय पुराण में कहा गया है कि अगर किसी व्यक्ति का पुत्र न हो तो उसकी बेटी का पुत्र भी पिण्ड दान कर सकता है। भाई-भतीजे, माता के कुल के लोग यानी मामा या ममेरा भाई या शिष्य श्राद्ध कर्म कर सकते हैं। अगर इनमें से कोई भी न हो तो कुल-पुरोहित या आचार्य श्राद्ध कर्म कर सकते हैं। पिता के लिए पिण्ड दान और जल-तर्पण पुत्र को करना चाहिए पुत्र न हो तो पत्नी और पत्नी न हो तो सगा भाई भी श्राद्ध कर्म कर सकता है। विष्णुपुराण में कहा गया है कि मृत व्यक्ति के पुत्र, पौत्र, भाई की संतति पिण्ड दान करने के अधिकारी होते हैं। अगर आपको मंत्र नहीं भी आते तो इससे श्राध्द कर्म में कोई असर नहीं पड़ता। बिना मंत्रों के श्राद्ध-कर्म किया जा सकता है। पत्नी भी श्राध्द कर्म कर सकती है अगर पत्नी भी न हो तो कुल कुल का कोई भी व्यक्ति श्राद्ध कर्म कर सकता है।
माता-पिता कुंवारी कन्याओं को पिण्ड दान कर सकते हैं। शादीशुदा बेटी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो तो पिता उसको भी पिण्ड दान कर सकता है। बेटी का बेटा और नाना एक-दूसरे को पिण्ड दान कर सकते हैं। इसी तरह दामाद और ससुर भी एक दूसरे के लिए कर सकते हैं। बहु भी अपनी सास को पिण्ड दान कर सकती है।
कुल मिलाकर कहा जाए तो श्राध्द कर्म जीवन का एक महत्वपूर्ण कर्म है। जब हम अपने पित्तों को प्रसन्न करने के लिए कार्य करते हैं। लिहाजा इन दिनों में अपने पित्तों का अधिक से अधिक ध्यान करना चाहिए।
2020-09-02