भ्रष्ट्र पार्टी के बेदाग नेता..

बेशक पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह पिछले कुछ समय से बिहार की राजनीति में एक्टिव नहीं थे। लेकिन अपने अंतिम समय में उनकी लिखी चिट्ठी ने बिहार की राजनीति में वो काम कर दिया है। जिसको ठीक करने के लिए अब लालू यादव को कोई चमत्कार का ही सहारा होगा। हालांकि अपनी ओर से चिट्ठी लिखकर लालू ने इसकी भरपाई की कोशिश की थी। लेकिन बिहार में सबको मालूम हैं कि लालू के साथ 32 साल खड़े रहने वाले रघुवंश की पार्टी में अब कोई पूछ नहीं थी। बेशक तेजस्वी राजनैतिक मज़बूरी के चलते रघुवंश बाबू के मृत शरीर के सबसे करीब खड़ें होने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन जब रघुवंश बाबू पटना में थे तो पार्टी के किसी मामले में कभी उनसे कुछ पूछा तक नहीं जा रहा था। लिहाजा आहत होकर ही रघुवंश बाबू ने इस्तीफा दिया था।

बिहार के पुराने पत्रकार बताते हैं कि लालू की सरकार के बिहार राज के दौरान लालू उनके परिवार या फिर सरकार पर कितने ही इल्जाम लगें हों। लेकिन रघुवंश बाबू हमेशा ही इन इल्जामों से दूर रहे। कहा जा सकता है कि इतने भ्रष्टाचार के दौरान भी रघुवंश बाबू बेदाग रहे। जाते जाते रघुवंश बाबू कि लिखी चिट्ठी इस बार बिहार के चुनावों में बड़ा रोल निभा सकती है। बिहार के वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर बताते हैं कि वो आरजेडी के फैसलों से सहमत नहीं थे। बल्कि वो पार्टी के कुछ लोगों से दूर रहना चाहते थे। जिसमें तेजस्वी भी शामिल थे। उन्हें इस बात की चिंता थी कि परिवार पार्टी पर लगातार भारी हो रहा है। उन्हें पार्टी पर परिवार का बढ़ता वर्चस्व परेशान कर रहा था। तीन बार केंद्रीय मंत्री रहे रघुवंश बिलकुल ठेठ नेता थे। लिहाजा अपनी बात रखने में भी वो बहुत ही साफ थे। इसलिए लालू को साफ साफ लिख दिया कि अब और नहीं। आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर रह चुके रघुवंश प्रसाद सिंह पार्टी में अब किसी पद पर नहीं थे। माना जाता है कि पार्टी और तेजस्वी यादव के काम करने के तरीकों से नाराज़ होकर उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दिया था। इसलिए कुछ ही महीनों दूर बिहार के चुनाव में लालू और उसके बेटे इस भावनात्मक मुद्दे से कैसे निबटेंगे ये देखना बड़ा ही दिलचस्प होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *