देश में जहां कुछ किसान Farmer कृषि कानून Agri Bill में बदलाव को लेकर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। वहीं दूसरी खेती में कंपनियों companies की सीधी खरीदी किसानों को मालामाल कर रही है। कम से कम मोगा Moga के किसानों ने तो 15 साल पहले बिचौलियों को हटा कर सीधे कंपनियों को माल बेचकर खुशहाल हैं। मोगा के गांव इंद्रगढ़ के नायक हैं मनजिंदर सिंह जिन्होंने साल 2005 में अपनी 20 एकड़ जमीन पर खेती का MOU एक कंपनी के साथ किया। जिसे कांट्रैक्ट खेती भी कहा जाता है। इस तरह की खेती के बूते मनजिंदर सिंह ने अपनी 20 एकड़ ज़मीन को 100 एकड़ कर लिया है। जहां आम किसान प्रति एकड़ 70 से 80 हजार रुपये तक कमाता है, वहीं मनजिंदर डेढ़ लाख रुपये कमा रहे हैं।
मनजिंदर बताते हैं कि 2005 में जब खेती से निराशा होने लगी और कर्ज बढ़ने लगा तो उन्होंने खेती छोड़ने का फैसला कर लिया था। तब किसी ने कांट्रैक्ट फार्मिंग की जानकारी दी तो उन्होंने आखिरी दांव खेला और एक कंपनी के साथ कांटैक्ट कर लिया। मनजिंदर के मुताबिक कांट्रैक्ट फार्मिंग से उन्हें हर साल खेती की नई-नई तकनीकों की जानकारी मिली। नए और उन्नत बीज मिलते गए। आमतौर पर सीजन के बाद किसान ट्रैक्टर-ट्रालियां खड़ी कर देते हैं, लेकिन यहां उनकी मशीनरी 12 महीने काम करती। कंपनी उसे अपने काम के लिए किराए पर ले लेती यह उनकी अतिरिक्त कमाई का हिस्सा बना उन्होंने खेती का यह फार्मूला अपनाया है, मंडियों पर निर्भरता समाप्त हो गई। तय शर्तो के अनुरूप कंपनी निर्धारित रकबे में फसल तैयार कराती है, देखरेख कराती है और तैयार होने पर पैदावार को खुद खेत से ले जाती है। समय पर पैसा खाते में आ जाता है। हर साल वह तीन फसलें ले रहे हैं। कुछ जमीन पर आलू, धान और सब्जियां अलग से उगाते हैं। दरअसल, वह दो प्रकार से कंपनी के साथ काम कर रहे हैं कांट्रैक्ट पर तो खेती करते ही हैं, कंपनी से बीज लेकर अपने स्तर पर भी कुछ भूमि पर स्वयं कृषि करते हैं। खुद से तैयार की गई फसल का कंपनी यदि वाजिब दाम देती है तो ठीक है, अन्यथा बाजार में बेच देते हैं। इससे अब उनकी कमाई बाकी किसानों के मुकाबले दोगुनी हो गई है। इसी वजह से पिछले 15 सालों में जहां दूसरे किसानों की ज़मीनें कम हुई हैं। वहीं मनजिंदर की जमीन कई गुना बढ़ गई है।