#FarmersProtest: किसान आंदोलन के नाम पर भारत को बदनाम करने की साजिश की परतें अब खुलती जा रही हैं। पहले स्वीडन की पर्यावरण एक्टिविस्ट ग्रेर्टा थर्नबर्ग ने भारत को बदनाम करने और सरकार गिराने के लिए जो प्लान (टूलकिट) बनाया हुआ है। उसको गलती से सार्वजनिक कर दिया। उसके बाद ये पता लग गया कि रिहाना को ट्विट करने के लिए 18 करोड़ रुपये दिए गए हैं। साथ ही ये भी पता चल गया कि ये पूरा काम पॉयोटिक जस्टिस फाउडेशन (PJF) ने किया है।
दरअसल इस पूरे किसान आंदोलन को कई तरह से समर्थन देने का काम कनाडा, अमेरिका और यूके से चल रहा है। वहां के कई संगठन जोकि खालिस्तान मूवमेंट का समर्थन करते हैं वो इस किसान आंदोलन को फंड और अन्य सामग्री उपलब्ध करा रहे हैं। तभी तो पूरे पंजाब की फिल्म इंडस्ट्री के लोग इस आंदोलन को समर्थन कर रहे हैं।
दप्रिंट के मुताबिक एम धालीवाल इस पूरी कहानी के पीछे मुख्य किरदार हैं। खालिस्तान समर्थक धालीवाल PJF के संस्थापक हैं। इसी संगठन ने मोदी सरकार को गिराने या बदनाम करने के लिए पूरी योजना तैयार की हुई है। जिसमें किसान आंदोलन एक है। इसके साथ ही धालीवाल एक पीआर एजेंसी स्काईरॉकेट के डारेक्टर भी है। इसी एजेंसी ने रिहाना को 18 करोड़ रुपये का भुगतान किया है। इस पीआर एजेंसी में कुल चार डारेक्टर हैं। जिसमें से धालीवाल के अलावा अनीता लाल हैं, जोकि कनाडा में रहती हैं और वहां से वर्ल्ड सिख ऑर्गनाइजेशन (WSO) चलाती हैं। दूसरा नाम जगमीत सिंह का है जोकि कनाडा के सांसद हैं, जबकि तीसरा नाम मरीना पेटरसन हैं। ये एजेंसी भारतीय खुफिया एजेंसियों की जांच का विषय बन गई है, क्योंकि ये पीआर एजेंसी ही इस आंदोलन के लिए कई तरह से सपोर्ट कर रही है।
दूसरा बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि जिस पर्यावरण एक्टिविट्स ग्रेटा ने इस किसान आंदोलन के लिए समर्थन किया, शायद उसे मालूम ही नहीं है कि इस आंदोलन की एक मुख्य मांग पराली जलाने की आजादी की है। जोकि आंदोलन के दबाव में सरकार ने मान भी ली है। ऐसे में अब लोग ये सवाल उठा रहे हैं कि एक पर्यावरण एक्टिविस्ट कैसे पराली जलाने के पक्ष में खड़ी हो सकती हैं।