#KhalistaniFundInFarmersProtest: किसान आंदोलन के नाम पर भारत को विदेशों में बदनाम करने की साजिश का खुलासा पुलिस ने कर दिया है। जिस पर्यावरण एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग ने इस आंदोलन को समर्थन किया था। उसकी टूलकिट और सोशल मीडिया हैंडलिंग की फंडिंग भी खालिस्तानी कर रहे थे। इस सिलसिले में एक तथाकथित एक्टिविस्ट दिशा रवि की गिरफ्तारी के बाद अब दिल्ली पुलिस उनके करीबियों की तलाश कर रही है।
दरअसल अभी तक की जांच में ये पता चला है कि जिस खालिस्तानी समर्थक एनजीओ पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन ने रिहाना को 18 करोड़ रुपये दिए थे। उसी एनजीओ के फाउंडर एमओ धालीवाल ने इन तथाकथित एक्टिविस्ट से जुम पर मीटिंग की थी। ख़ास बात ये है कि ये मीटिंग 26 जनवरी की हिंसा से पहले हुई थी। मामले की गंभीरता को देखते हुए दिल्ली की एक कोर्ट ने सोमवार को दिशा के दो साथियों निकिता जैकब और शांतनु के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी कर दिया। निकिता ने इसके खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में ट्रांजिट बेल की अर्जी दायर कर दी है, जिस पर मंगलवार को सुनवाई होगी।
पुलिस जांच में खुलासा हुआ है कि बेंगलुरु की एक्टिविस्ट दिशा, मुंबई की एक्टिविस्ट वकील निकिता जैकब और शांतनु ने खालिस्तानी समर्थक माने जाने वाले के फाउंडर एमओ धालीवाल के साथ जूम ऐप पर मीटिंग की थी। इस मीटिंग का मकसद 26 जनवरी से पहले सोशल मीडिया पर खलबली मचाना था। दिल्ली पुलिस की साइबर सेल के जॉइंट कमिश्नर प्रेम नाथ के मुताबिक, कनाडा की रहने वाली पुनीत नाम की महिला ने दिशा, निकिता और शांतनु को इस संगठन से जोड़ा था।
इस मीटिंग के बाद 3 फरवरी को 18 साल की क्लाइमेट एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग ने दो सोशल मीडिया पोस्ट लिखी थीं। पहली पोस्ट में उन्होंने किसानों का समर्थन किया था, दूसरी पोस्ट में एक टूलकिट शेयर की थी। यह टूलकिट दरअसल एक गूगल डॉक्यूमेंट था। इसमें ‘अर्जेंट और ऑन ग्राउंड एक्शंस’ का जिक्र था। यानि इन लोगों ने ये तैयारी की थी कि कैसे इस मामले को सोशल मीडिया पर सनसनी बनाया जाए। ताकि भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनामी हो सके।
दिल्ली पुलिस की साइबर सेल ने इसे सरकार विरोधी मानते हुए टूलकिट बनाने वालों के खिलाफ 4 फरवरी को देशद्रोह और साजिश रचने के आरोप में FIR दर्ज की थी। पुलिस ने गूगल से इस टूलकिट से जुड़ी जानकारी साझा करने को कहा और इसके बाद दिशा की गिरफ्तारी हुई।