दिल्ली में कोरोना मामले बढ़ने के साथ ही दिल्ली में रेडियो स्टेशन और अन्य जगह चलने वाले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल वाले विज्ञापन भी बंद हो गए हैं। अब दिल्ली सरकार के विज्ञापन आ तो रहे हैं, लेकिन इसमें से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आवाज गायब हो गए हैं। दरअसल जब दिल्ली में सारे देश की तरह कोरोना कम हो गया था, तब केजरीवाल अपनी और अपनी सरकार की पीठ थपथपाने के लिए लगातार रेडियो, टीवी और अखबार में अपनी आवाज में या अपने विडियो वाले विज्ञापन में आ रहे थे। लेकिन जैसे ही मार्च के अंतिम हफ्ते से कोरोना बढ़ना शुरू हुआ तो केजरीवाल वाले विज्ञापन रेडियो टीवी और अखबारों से गायब हो गए। ताकि बुरे हालात पर उन्हें लोगों के गुस्से का सामना ना करना पड़े।
इस बारे में मीडिया सलाहकार भूपेंद्र सोनी के मुताबिक “ये एक रणनीति के तहत किया जा रहा है। जिसे समझने में आम आदमी को मुश्किल भी होती है। जब जब कुछ अच्छा होता है तो दिल्ली के मुख्यमंत्री रेडियो, टीवी और अखबारों में छा जाते हैं। इससे लोगों के दिलो दिमाग पर ये बात आने लगती है कि केजरीवाल सरकार ने काम किया है। लेकिन जब कुछ खराब होता है तो केजरीवाल विज्ञापनों से गायब हो जाते हैं। जैसे की अब जब दिल्ली में 10 हज़ार से ज्य़ादा कोरोना केस आ रहे हैं तो केजरीवाल के विज्ञापन अब रेडियो पर सुनाई नहीं दे रहे हैं। लेकिन मार्च के आखिरी हफ्ते तक ये सुनाई दे रहे थे”।
दिल्ली बीजेपी सांसद रमेश बिधुड़ी ने कहा कि, “हम तो पहले से ही कहते आ रहे हैं कि ये दिखावे के लिए बहुत सारे काम करते है। जैसे पूरी बाजू की शर्ट पहनना, शर्ट बाहर निकालना, ढीली ढाली पेंट पहनना इसी तरह ये काम पर नहीं विज्ञापनों पर ही खर्च करते हैं। अब जब कोरोना बढ़ा है तो अस्पतालों और प्रशासन को दुरूस्त करने की जरूरत है तो पूरी दिल्ली सरकार घर में बैठी हैं। कुछ दिन पहले तक हर रेडियो, टीवी और अखबार में मुख्यमंत्री ही दिख छप रहे थे। लेकिन अब गायब हो गए हैं। उनके खुद के स्वास्थ्य मंत्री कह रहे है कि केंद्र सरकार के अस्पतालों में बेड बढ़ाए जाने चाहिएं। वो तो पिछली बार ही हुआ ही था। लेकिन दिल्ली सरकार क्या करेगी, सिर्फ विज्ञापन में ही दिखेगी”।
दरअसल दिल्ली सरकार ने विज्ञापन पर भारी भरकम खर्च करती है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का सालाना विज्ञापन का बजट लगभग 200 से 250 करोड़ रुपये का है। जिसमें से वो एक बड़ा हिस्सा राजधानी के बाहर उन राज्यों पर भी खर्च करते हैं जहां वो चुनाव लड़ने जाने वाले होते हैं।