Vulturism: क्या भारत को विदेशों में बदनाम करके पैसा कमा रहे हैं कुछ पत्रकार?

#CoronaUpdates: विदेशों में भारत की बदहाली को प्रचारित करने और उससे पैसा कमाने वालों पत्रकारों और अन्य लोगों के खिलाफ देश में गुस्सा उबल पड़ा है। अभिनेत्री कंगना रनौत के अलावा देश में पत्रकारों का भी एक बड़ा वर्ग भी इसका बड़ा विरोध कर रहा है।

अभिनेत्री कंगना रनौत ने कहा कि भारत में जब भी क्राइसेस आती है तो बाकी दुनिया भारत के खिलाफ हो जाते हैं। टाइम मैग्ज़ीन पर जलती लाशों के फोटो आते हैं, जोकि बेस्ट सेलिंग है। बरखा दत्त, राणा अयुब देश के खिलाफ लिखते हैं। पहली वेव में अमेरिका, इटली में क्या हुआ दुनिया ने देखा, दूसरी वेव में ब्रिटेन भी जूझ रहा है। लेकिन वहां कि किसी ने देश के खिलाफ नहीं लिखा। सबको पता है कि ये वायरस वुहान से आया है, लेकिन इनमें से किसी की हिम्मत नहीं है कि इसे चाइनीज़ वायरस या कम्यूनिटस वायरस लिख दे। लेकिन अब समय आ गया है कि इनका इलाज़ किया जाए।

नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिसट के पूर्व महासचिव मनोज वर्मा ने www.theekhabar को बताया ये पूरी तरह से गैर जिम्मेदाराना पत्रकारिता है, लोगों को हताश करना लोगों को डराना, लोगों के अंदर भय पैदा करना ये पत्रकारिता का काम नहीं है। इसी किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता, एक वर्ग के मीडिया का रवैया हमेशा से इस तरह का ही रहा है। चाहे वो आतंकवाद खिलाफ लड़ाई हो, नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई हो। ये लोग सबसे ज्य़ादा अभिव्यक्ति की आज़ादी की दुहाई देते हैं और उसका उल्लंघन भी करते हैं। जलती चिताएं दिखाना आज़ादी नहीं है। लोगों को तड़पता हुआ दिखाना क्या पत्रकारिता है। देश में संकट है। ऐसे समय में हमारी एक जिम्मेदारी है। लोगों को सकारात्मक सूचनाएं देकर लोगों को सही राह दिखाएं। सरकार की अगर कोई कमियां है तो उसको दिखाने और बताने का भी उचित समय होता है। फिलहाल वो समय नहीं है। देश की छवि को बिगाड़ने वाला कोई भी काम मैं पत्रकारिता की दृष्टि से उचित नहीं मानता।

डीडी न्यूज के वरिष्ठ एंकर अशोक श्रीवास्तव के मुताबिक पत्रकारिता में कुछ लोग जर्नलिज्म की बजाए वल्चरिज्म कर रहे हैं। मैं नाम नहीं लेना चाहता एक पत्रकार का, जिन्होंने अपने परिवार में किसी को खोया है। लेकिन वो पत्रकार पहले खुद कहती हैं कि देश के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक में उनके पिता का इलाज हो रहा है। बाद में वो विदेशी मीडिया में बोलती है कि उनके पिता की मौत बिना इलाज के हो गई। जोकि सरासर झुठ हैं। अब इसे क्या कहा जाए, क्या आप देश की छवि को बिगाड़ने के लिए काम कर रहे हैं। किसी का अंतिम संस्कार तो बहुत ही प्राइवेट मामला है। आप अंतिम संस्कार की तस्वीरें खींचकर विदेशी एजेंसियों को बेच रहे हैं। एक एक फोटो ये लोग 25,30 हजार रुपये में बेच रहे हैं। इसे गिद्धपत्रकारिता ही तो कहा जाएगा। दुनिया में संकट सभी जगह आया, कोरोना से सभी जगह मौते हुई, लेकिन इस तरह से बॉडी तो कहीं नहीं दिखाई गई। अमेरिका में 9/11 की आतंकी हमले के बाद एक भी बॉडी किसी ने आज तक नहीं देखी, ना ही कोरोना में उनके यहां दिखी। जबकि सबसे ज्य़ादा दुनिया में मौत अमेरिका में हुई हैं। लेकिन हमारे यहां जलती चिताएं दिखा रही हैं। होना ये चाहिए कि स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर राज्य और केंद्र दोनों की कमियों को उजागर करना चाहिए। लेकिन पत्रकार लोगों को डरा रहे हैं। जोकि ठीक नहीं है। कई लोगों के हमारे पास फोन आ रहे हैं। जोकि मीडिया की वजह से मानसिक तौर पर बीमार हो गए हैं।

मानसिक स्वास्थ्य पर काम कर रही डॉ. बीना बस्नेत के मुताबिक टीवी पर जो दिख रहा है, उसे देखकर तो लगाता है कि टीवी नहीं देखना चाहिए। बस शांत रहें, तभी आप इस कोरोना को हरा सकते हैं।

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