#SaveWater: “पानी बचाएं, वरना हम नहीं बच पाएंगे”

(ज्योति रंजन पाठक, जाने माने कॉलम लेखक हैं, ये लगातार पर्यावरण के मुद्दों पर लिखते हैं)

#WaterIsLife: जल संरक्षण आवश्यक प्रधानमंत्री मोदी ने बीते 22 मार्च को विश्व जल दिवस पर ‘जल शक्ति अभियान : कैच द रेन ‘ की शुरुआत की और कहा कि भारत की आत्मनिर्भरता जल संसाधनो ऑर जल संपर्क पर निर्भर है । उन्होने ने कहा कि जल के प्रभावी संरक्षण के बिना भारत का तेजी से विकास संभव नहीं हो सकता है । देश में बारिश का ज़्यादातर पानी बर्बाद होने पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वज हमारे लिए जल छोडकर गए, हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम भविष्य की पीढ़ियों के लिए इसका संरक्षण करें, क्योंकि जल ही जीवन है । सदियों पहले रहीम ने कहा था –रहिमन पानी रखिये ,बिन पानी सब सून । पृथ्वी आज जल संकट के भयावह दौर से गुजर रही है। लगभग सवा तीन अरब आबादी ऐसे खेतिहर इलाके में रहती है, जहां पानी की बड़ी दिक्कत है । एक अनुमान को मानें तो वर्ष 2040 तक 18 साल से कम आयु का हर बच्चा ऐसी जगहों पर रह रहा होगा ,जहां पानी की बहुत किल्लत होगी। ऐसे बच्चों की संख्या लगभग 60 करोड़ होगी । अगले एक दशक में 70 करोड़ लोग पानी की समस्या के कारण पलायन के मजबूर हो जाएंगे । हमारे देश में भी पानी की कमी की समस्या चिंताजनक स्थिति में है । नीति आयोग ने मौजूदा हालात को भारत के इतिहास का सबसे गंभीर जल संकट माना है । भारत में भी बड़े पैमाने पर नगरीकरण और औद्योगिककरण के विस्तार, प्रसार और वैश्विक तापमान में बदलाव से घटते भूजल स्तर ,एवं जनसंख्या वृद्धि के कारण और बढ़ती पानी की मांग ऐसी कारण है ,जिससे पानी की समस्या और भी विकराल होती जा रही है । संयुक्त जल प्रबंधन सूचकांक की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में 21 शहर जीरो ग्राउंड वाटर लेवल पर पहुँच गए हैं। मतलब उन शहरों में पीने का पानी अब नहीं है। बुंदेलखंड और लातूर जैसे क्षेत्रों में भी पानी की कमी पूरा करने के लिए उत्तरप्रदेश से ट्रेनों के माध्यम से पानी पहुंचाया जाता रहा है। भारत में लगभग 77 करोड़ लोग या तो जल की मात्रा या फिर गुणवत्ता की समस्या से रूबरू हो रहे हैं । सरकारी आंकडे बताते हैं कि भारत में सिर्फ 16 प्रतिशत लोगों के घरों में ही पाइप से पानी पहुंचता है । विडम्बना यह है कि भारत विश्वगुरु बनने की सपना देखनेवाला देश में 22 प्रतिशत लोग आज भी अपने घरों से पानी लाने हेतु आधा किलोमीटर या इससे भी अधिक दूरी तय करते हैं। चौंकने वाले आकड़ें यह है कि दूषित जल के कारण भारत में प्रति वर्ष दो लाख नागरिकों की मौत हो जाती है । पानी की समस्या पर संयुक्त राष्ट्र का भी यह कहना है कि वर्ष 2025 तक भारत में जल संकट उत्पन्न हो सकता है, जिससे भारत में अनेक सामाजिक एवं राजनीतिक समस्या पैदा हो सकती है। जल संकट की गहराती समस्या की स्थायी हल हेतु स्थानीय एवं प्राकृतिक आधार पर सुनियोजित तरीके से नीति बनाने की जरूरत है । हमें वर्षा के बूंदों को सलीके से संजोकर या तो धरती के गर्भ में भेजना होगा ,या सूर्य की गर्मी से बचाकर महफूज रखना होगा । वर्षा जल को संजोने के लिए भारत के हरेक राज्य में प्राकृतिक संरचनाएं ( तालाब ,आहर, बावडी  और पईन ) जैसे स्त्रोत मौजूद हैं । लेकिन समय की मार ने इन संरचनाओं को जीर्ण –शीर्ण कर दिया है । इन प्राकृतिक जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने की जरूरत है। पानी की कमी को पूरा करने में वृक्षारोपण को बढ़ावा देना एक अच्छा विकल्प हो सकता है क्योंकि वृक्ष की मदद से कम हो रहे भूजल अपनी मूल प्रकृति में वापस आ सकती है। साथ ही ग्लोबल वार्मिंग ,बाढ़ ,सूखा जैसी विपदा संतुलित हो सकती है ,इसके अलावा हर नगर पालिका ,नगर निगम को यह जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि नदियों एवं तालाबों में गिरने वाले जल को मशीनों द्वारा उपयुक्त उपचार कर पीने योग्य बनाया जाय । जिस प्रकार से भारत के विभिन्न भागों में प्रति वर्ष पानी का संकट बढ़ता जा रहा है ,उसे देखते हुए समाज व सरकार दोनों स्तरों से समूहिक पहल करना अति आवश्यक है । इस समस्या से बाहर निकलने के लिए राज्य सरकारों की सहभागिता अनिवार्य है । साथ ही सामुदायिक सहयोग की भावना को विकसित करने की आवश्यकता है । पानी की समस्या को दूर करने की कोशिश सिर्फ सरकार की नहीं होनी चाहिए। अगर ऐसा होगा तो यह संकट निरंतर गहराता ही जाएगा ,लेकिन समाज भी सरकार के साथ अपनी जिम्मेदारी को समझेगा ,तो भारत इस विकराल समस्या के मूल में पहुँचकर उसका समाधान कर सकने में सफल होगा । यदि समय रहते हम नहीं सचेत हुए ऑर जल संरक्षण के तरीकों पर अमल एवं अपनी सक्रियता से कार्य नहीं किया ,तो वह दिन दूर नहीं होगा ,जिस दिन मानवता का अस्तित्व ही खतरे में आ जाएगा , क्योंकि जल है ,तो कल है

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