#cloudbursts: बारिश के मौसम से पहले ही उत्तराखंड के टिहरी इलाके #Tihri में एक सप्ताह में दूसरी बार बादल फट गया है। धार्मिक महत्व के इलाके देवप्रयाग #Devprayag में आज बादल फट गया। हालांकि कोविड कर्फ्यू #CovidCurfew के कारण जान का नुकसान तो नहीं हुआ है। लेकिन टिहरी में लगातार एक हफ्ते में दूसरी बार बादल फटा है, टिहरी इलाके में पिछले 10 सालों में बादल फटने की घटनाएं काफी बढ़ गई हैं। इससे पर्यावरणविदों में चिंता की लहर दौड़ गई है।
देवप्रयाग में अलखनंदा और भागीरथी नदी के संगम वाले बाज़ार में अचानक बरसाती नदी में तेज़ ऊफान आ गया और इसमें 10 दुकानें और आइटीआइ भवन बह गए। हालांकि कोविड के चलते बाजार बंद था। इससे किसी की जान का नुकसान नहीं हुआ, साथ ही जो लोग वहां थे भी वो समय पर ऊपर सुरक्षित स्थानों पर चले गए थे। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने अधिकारियों से संपर्क कर हालात का जायजा लिया और जिला प्रशासन से रिपोर्ट मांगी है। शाम करीब पांच बजे की है। देवप्रयाग से ऊपर की ओर अचानक बादल फट गया। इससे बरसाती शांता नदी में तेज़ ऊफान आ गया। साथ ही पानी के साथ काफी मलबा नीचे आ गया। नदी के एरिया में जितनी दुकानें और भवन थे, उन सबको नदी अपने साथ बहाकर ले गई। इनमें ज्वैलरी शाप, कंप्यूटर सेंटर, मिठाई और फर्नीचर की दुकानें शामिल हैं। इस दौरान बाजार में मौजूद एक सुरक्षा कर्मी ने भागकर जान बचाई। चार दिन पहले ही घनसियाली इलाके में भी बादल फटा था।
क्यों फट रहे हैं बादल
पर्यवरण क्षेत्र में काम करने वाली डाउन टू अर्थ में छपी एक रिपोर्ट में मिजोरम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विश्वंभर प्रसाद सती ने उत्तराखंड में बादल फटने की घटना पर अपना शोध पत्र वर्ष 2018 में स्विटजलैंड में पेश किया था। उनके इस शोध पत्र के मुताबिक सामान्य तौर पर जून से अक्टूबर तक बारिश के दौरान ही बादल फटते हैं। साल 2009 से 2014 के बीच बारिश के आंकड़ों की पड़ताल पर उन्होंने पाया कि बारिश में अत्यधिक उतार-चढ़ाव आए हैं। बारिश में गिरावट भी आई है। लेकिन बड़ी बात ये है कि पहले बारिश लंबी अवधि के लिए हुआ करती थी और थोड़ी थोड़ी होती थी। लेकिन अब अचानक से तेज़ बारिश होने लगती है। जो कि बादल फटने के बराबर है, जिससे प्राकृतिक आपदाएं आती हैं। उनके मुताबिक बारिश में अत्यधिक उतार चढ़ाव और जलवायु परिवर्तन की वजह से वर्षा की तीव्रता और फ्रीक्वेंसी दोनों बढ़ी हैं।
प्रोफेसर सती के मुताबिक क्लाइमेट वेरिएबिलिटी पूरे हिमालयी क्षेत्र में बहुत बढ़ी है। बारिश की तीव्रता भी बढ़ गई है। बारिश अब पूरे इलाके में ना होकर कुछ पॉकेट्स में हो रही है। किसी एक जगह बादल इकट्ठा होते हैं और अत्यधिक भारी वर्षा से बादल फटने जैसी स्थितियां पैदा हो जाती हैं। उनके शोध के मुताबिक मानसून का टोटल टाइम ड्यूरेशन यानी कुल अवधि भी कम हो गई है। लेकिन बारिश में ज्य़ादा कमी नहीं हुई है। इसका मतलब ये है कि बादल फटने जैसे घटनाएं या अचानक तेज बारिश बढ़ गई है।
वाडिया इंस्टीट्यूट के जियो-फिजिक्स विभाग के अध्यक्ष डॉ सुशील कुमार के मुताबिक बादल फटने की घटनाएं उत्तराखंड में पहले होती थी। लेकिन पिछले दस सालों में ये बहुत बढ़ गया है। पहले बादल फटने की घटनाएं दुर्गम इलाकों में किसी गांव में ऐसी इक्का-दुक्का घटनाएं होती थीं। जिससे नुकसान भी इतना अधिक नहीं होता था। लेकिन अब मल्टी क्लाउड बर्स्ट यानी बहुत सारे बादल एक साथ एक जगह पर फट रहे हैं, जैसा कि टिहरी इलाके मे हो रहा है। यहां घनसियाली इलाके में हर साल बादल फट रहे हैं।
डॉ सुशील के मुताबिक टिहरी बांध के बाद बादल फटने की घटनाएं बढ़ी हैं। टिहरी में भागीरथी नदी पर करीब 260.5 मीटर ऊंचा बांध बना है। जिसका जलाशय करीब 4 क्यूबिक किलोमीटर का करीब 3,200,000 एकड़ फीट में फैला है, जिसका उपरी हिस्सा करीब 52 वर्ग किलोमीटर का है। जिस भागीरथी नदी का कैचमेंट एरिया (जलग्रहण क्षेत्र) पहले काफी कम था, बांध बनने के बाद वो बहुत बढ़ गया है। इसलिए इतनी बड़ी मात्रा में एक जगह पानी इकट्ठा होने से बादल बनने की प्रक्रिया भी अत्यधिक तेज़ हो गई है। मानसून सीजन में बादल इस पानी को संभाल नहीं पाते हैं और फट जाते हैं।