#ToothpestMarket: दाँतों के लिए पेस्ट से अच्छा है मंजन, मंजन से अच्छा है, दातुन और सेंधा नमकयुक्त सरसों तेल से मालिश तो सर्वोत्तम है। परंतु कभी कोई डेंटिस्ट आपको यह बात नहीं बताएगा। जब देश में कोलगेट वाले पेस्ट और प्लास्टिक ब्रशों का प्रचार कर रहे थे तो हमेशा उन्होंने यह घोषणा की कि उनका उत्पाद डेंटल एसोशिएशन द्वारा प्रमाणित है। क्या आपने कभी डेंटिस्टों को इसके विरोध में आवाज उठाते सुना? या इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यानि IMA जैसी संस्थाओं ने इसके विरोध में आवाज उठाई? नहीं।
दरअसल भारत में टूथपेस्ट का बाज़ार सालाना 10 हज़ार करोड़ रुपये का है। अगर देश में सेंधा नमक और सरसों तेल से लोग दांत साफ करने लगेंगे तो कोलेगेट, पेप्सोडेंट और बाकी टूथपेस्ट ब्रांड्स और उनकी कंपनियों का क्या होगा। पूरे टूथपेस्ट मार्केट में अकेले कोलगेट ही 5 हज़ार करोड़ रुपये से ज्यादा का माल बेचती है।
भाई, लोगों के दाँत मजबूत होंगे तो डेंटिस्टों और टूथपेस्ट कंपनियों की दुकान कैसे चलेगी? उनकी दुकान तो चलेगी ही तभी जब लोगों के दाँत कमजोर हों, उनमें कीड़ा लगे, वे सड़ जाएं। तो कैडबरी की चाकलेटों, पेस्ट और प्लास्टिक ब्रश आदि इसी काम के लिए तो हैं। इनका विरोध कोई भी डेंटिस्ट क्यों करेगा? वह तो इनका स्वागत ही करेगा भले ही मन में करे। आज के अधिकांश बच्चे दाँतों की सड़न यानी कैविटी से परेशान हैं, परंतु डेंटिस्ट एशोसिएशन द्वारा प्रमाणित पेप्सोडेंट 24 घंटे ढिशुम ढिशुम करने के बाद भी इन कैविटिज से आपकी कोई रक्षा नहीं कर सकता, कोई ये सवाल तो आईएमए से पूछो?
डेंटिस्ट को केवल दाँतों में छेद करना, उन्हें उखाड़ना और उनके नकली सेट बनाना भर आता है। दाँतों के लिए लाभकारी मंजन बनाना उसे आता ही नहीं है। न ही उसे यह पता है कि दाँतों के लिए कौन सी वनस्पतियां लाभकारी हैं। दातुनों की तो उसे कतई कोई जानकारी नहीं है।
करंज के दातुन कैसे भी हिलते दाँतों को मजबूत बना देते हैं। करंज न मिले तो अमरूद और बबूल के दातुन भी यही काम करते हैं। नीम के दातुन दाँतों को सड़ने नहीं देते। चिड़चिड़ा यानी अपमार्ग के जड़ की दातुन दाँतों को मजबूत बनाती है। ऐसे पौधे मैंने देखें हैं, जिनके पत्तों या फूल को चबा लेने भर से पूरा मुख शुद्ध हो जाता है, दाँत मजबूत होते हैं और ऐसी ताजगी आती है, जो कोई भी क्लोजअप नहीं दे पाता।
मंजनों में अवश्य काफी कुछ होता है जो दांतों को लाभ पहुँचाता है। और ध्यान रखें कोई भी पेस्ट चाहे वह कितना भी नीम और बबूल से युक्त हो, उनका विकल्प होना तो दूर, उसके आसपास भी नहीं हैं। उनमें न तो नीम है और न ही बबूल, बस उनके चित्र बने हुए हैं उनमें। इसी प्रकार वेदशक्ति में न तो वेद है और न ही शक्ति।
यह ठीक से समझ लें कि एलोपैथ बाजार से चलती है। यह स्वास्थ्य के लिए नहीं, बाजार के लिए बनी है। (लेखक के निजी विचार हैं)