#VaccinationPolicy: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से वैक्सीन नीति के बारे में सवाल पूछे हैं। साथ ही कोर्ट ने वैक्सीन के 35 हज़ार करोड़ रुपये के बजट के बारे में भी पूछा है। कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया कि वो इस मामले में मूकदर्शक नहीं रहेगा। दरअसल केंद्र के सरकार की नीतियों में हस्तक्षेप की बात पर कोर्ट ने कहा कि जब कार्यपालिका की नीतियों से नागरिकों के अधिकार प्रभावित होते हैं तो कोर्ट चुप नहीं बैठक सकता। नीतियों की न्यायिक समीक्षा उसका कर्तव्य है।
इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने वैक्सीन नीति से जुड़े कई सवाल केंद्र सरकार से पूछे और राज्यों से भी हलफनामा मांगा है कि वह मुफ्त में जनता को वैक्सीन दे रही हैं या नहीं। अब राज्यों को भी वैक्सीन को लेकर अपनी स्थिति साफ करनी पड़ेगी।
इससे पहले केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा था कि वैक्सीनेशन सरकार का नीतिगत मामला है और यह कार्यपालिका का कार्यक्षेत्र है, लिहाजा कोर्ट को वैक्सीनेशन पॉलिसी दखल नहीं देना चाहिए। इसपर कोर्ट ने आदेश में कहा है कि अधिकारों के बंटवारे से कोर्ट का नीतियों की समीक्षा करने का क्षेत्राधिकार खत्म नहीं होता है। जब कार्यपालिका की नीतियों की वजह से नागरिकों के संवैधानिक अधिकार बाधित होते हों तो संविधान ने कोर्ट को मूकदर्शक नहीं बनाए रखा है। नीतियों की न्यायिक समीक्षा करना कोर्ट का कर्तव्य है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कोरोना वैक्सीन की खरीद को लेकर शुरु से अभी तक का पूरा ब्योरा पेश करने को कहा है। साथ ही जनसंख्या के हिसाब से ग्रामीण और शहरी लोगों के वैक्सीनेशन का भी ब्योरा मांगा है। कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को हलफनामा दाखिल कर मुफ्त वैक्सीनेशन पर स्थिति स्पष्ट करने को कहा है। केंद्र और राज्यों को दो सप्ताह में हलफनामा दाखिल करने को कहा है। इसके साथ ही वैक्सीनेशन पॉलिसी भी पेश करनी होगी। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार हलफनामे के साथ वैक्सीनेशन पॉलिसी जरूरी दस्तावेज व फाइल नोटिंग भी अदालत में पेश करेगी। जिसमें सरकार की वैक्सीनेशन पॉलिसी का पूरा खाका होगा।