#Bitcoin: वर्चुअल करेंसी के ट्रांसेक्शन में कितनी बिजली होती है खर्च?

#VirtualCurrency: वर्चुअल करेंसी का जोर आजकल सब जगह है, लेकिन क्या आपको मालूम है कि बाकी करेंसियों से बिटक्वाइन जैसी वर्चुअल करेंसियां बिजली की खपत को कैसे बढ़ा देती हैं। दरअसल बिटक्वाइन या अन्य वर्चुअल करेंसी कंप्यूटर्स से बनती हैं। यानि क्रिप्टोकरेंसी लाखों लोग अपने कंप्यूटर्स में कुछ विशेष सॉफ्टवेयर के जरिए माइनिंग करते हैं और फिर ये करेंसी जमा होती है। लेकिन इन लाखों करोड़ों लोगों के लगातार कंप्यूटर्स के चलाए रखने की वजह से दुनिया में बिजली की खतप बहुत ज्य़ादा बढ़ रही है।
यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज ने कहा है कि बिटक्वाइज जैसी करेंसियों से दुनिया में बिजली की खपत में काफी बढ़ोतरी हुई है। कैंब्रिज ने एक ऑनलाइन टूल के जरिए पता लगाया है कि क्रिप्टो करेंसी में कितनी बिजली खर्च होती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक बिटक्वाइन हर साल 143 टेरावॉट बिजली की खपत कर रही है, हालांकि इसमें बाकी क्रिप्टोकरेंसी भी मिला ली जाएंगी तो ये बिजली खपत और बढ़ जाएगी। यह एक साल में दुनिया की कुल बिजली की खपत का .65 प्रतिशत है। लेकिन ये बिजली खपत दुनिया के कुल बिजली खपत से भी ज्यादा है। जैसे नार्वे एक साल में 124 टेरावॉट बिजली खर्च करता है और स्विट्जरलैंड मात्र 56 टेरावॉट प्रति वर्ष। अगर बिटक्वाइन कोई देश होता तो यह दुनिया का सबसे ज्यादा बिजली खपत करने वाला 27वां देश होता।
बिटक्वाइन माइनिंग
बिटक्वाइन किसी प्रिटिंग प्रेस में छपने वाली करेंसी नहीं है, बल्कि ये कंप्यूटर के जरिए तैयार की जाती है। जिस नेटवर्क के जरिए लोग बिटकॉइन कमाते हैं उसे ‘माइनर्स’ कहा जाता हैं। बिटकॉइन की माइनिंग के लिए कई कंप्यूटर को क्रिप्टोकरंसी नेटवर्क के साथ जोड़ा जाता है। इस दौरान कंप्यूटर भारी मात्रा में बेहद जटिल समीकरण तैयार करता है। इसे प्रूफ ऑफ वर्क प्रोटोकॉल कहते हैं। ये काफी लंबा प्रोसेस भी है। इसमें कंप्यूटर्स को लगातार ऑन रहना पड़ता है। इसलिए बिजली की खपत बहुत ही बढ़ जाती है। इससे सिस्टम भी गर्म हो जाते हैं। इसलिए कुछ बिटक्वाइन माइनर लागत कम करने के लिए आइसलैंड जैसी जगहों पर चले गए हैं, ताकि सिस्टम ठंडे रहे और बिजली की खपत कम हो।
हर एक व्यक्ति के पास से दूसरे के पास जाने में बिटक्वाइन को कई कंप्यूटर कोड से गुजरना पड़ता है। इसके अलावा बिटक्वाइन नियंत्रित करने वाले माइनर्स कई गणना करते हैं, जिससे पता चले कि वर्चुअल करेंसी की लेन-देन सही है या नहीं। यह एक कोड तोड़ने जैसी प्रक्रिया है। इसमें 1.7 अरब से ज्यादा गणना होती है। इस कंप्यूटर प्रक्रिया में भी काफी बिजली खर्च होती है। विशेषज्ञों के मुताबिक हर बिटक्वाइन की लेन-देन में इतनी ऊर्जा खर्च होती है, जिनसे अमेरिका के नौ घर दिनभर बिजली खर्च कर सकते हैं।

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