#Congress: प्रदेश में कांग्रेस के केवल 11 विघायक हैं और एक और उत्तराखंड में कॉंग्रेस स्वयं को भाजपा का विकल्ल्प बताते नहीं थकती, वहीं हालात उसके जमीनी हकीकत से कोसों दूर होने का एहसास करातें है। हाल ही में देखें तो महीनों से सूबे में पार्टी का सीएम चेहरा तय करने को लेकर पार्टी आलाकमान का असमंजस अब प्रदेशाध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष घोषित करने तक जा पहुंचा है।
वहीं दूसरी और प्रतिद्वंदी भाजपा ने 4 महीने में ही तीन.तीन मुख्यमंत्री बदल डाले, बड़े से बड़े राजनैतिक जानकारों की पैशानी पे भी बल पड़ गए हैं, ये तय करने में कि कॉंग्रेस नेतृत्व निर्णय क्यूं नही कर पा रहे है या वो निर्णय करना ही नहीं चाहता है। आलाकमान के लिए चुनाव में जीतना जरूरी है या जीत में भी अपना पराया देखना जरूरी है।
कन्फ़्यूजन कन्फ़्यूजन कन्फ़्यूजन, किंकृत्यविमूढ़ अमूमन यह शब्द आम हिन्दी जानने वालों के लिए भी आसान नहीं है ,लेकिन कॉंग्रेस के नीति नियंताओं की मनोस्थिति को दर्शाने के लिए इससे सटीक शब्द कोई नही है। सिर्फ उत्तराखंड की परिस्थितियों पर ही परखें तो कॉंग्रेस की निर्णयविहिन नेत्रत्वनीति स्पष्ट उजागर होती है । सालभर से पार्टी में जारी मुख्यमंत्री का चेहरा बनने की लडाई का नतीजा भी नही निकला कि प्रदेशाध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष पद के मोर्चे भी खुल गये हैं । राजनैतिक जानकारों का मानना है कि इस रस्साकशी का ही एक साइड इफेक्ट था वरिष्ठ नेता और तात्कालीन नेता प्रतिपक्ष इन्दिरा हृदयेश का दिवंगत होना । सियासी हल्कों में यह चर्चा आम थी कि इन्दिरा हृदयेशए हरीश रावत को सीएम का चेहरा नहीं घोषित करने की लाबिंग के लिये कोरोना से खराब सेहत के बावजूद लगतार दिल्ली में थी । इसी तनाव का खमियाजा शायद उनके जीवन के लिए भारी पड़ गया ।