#AmitShah: मोदी सरकार में सहकारिता मंत्रालय के गठन के साथ ही विपक्षी पार्टियों में खलबली मच गई है। कॉओपरेटिव के नाम पर दशकों से जनता के पैसे पर जमे हुए राजनैतिक दलों को अपनी कुर्सी और पैसों की चिंता सताने लगी है। दरअसल देश में सहकारी संस्थाओं और सहकारी बैंकों का एक बड़ा नेटवर्क है। जिनपर कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस, लेफ्ट का एकछत्र साल दसियों सालों से चल रहा है। इसी सहकारी फंड के दम पर ये पार्टियां अपनी अपनी सियासत चलाती रही है।
इस तरफ सरकार के ध्यान देने से बाद अब कांग्रेस बाकी विपक्षी दलों को लेकर आवाज उठाने की कोशिश में है। दरअसल अगर सहकारिता मंत्रालय अमित शाह के अलावा किसी ओर को दिया जाता तो विपक्षी दल इतना परेशान नहीं होते। लेकिन गृह मंत्री अमित शाह को ये मंत्रालय देने से कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों में खलबली मच गई है।
दरअसल गुजरात में सहकारी संस्थाओं और बैंकों से कांग्रेस को बाहर करने के बाद राज्य में कांग्रेस दोबारा कभी सत्ता में नहीं आ सकती है और गुजरात में ये काम गृह मंत्री अमित शाह ने किया था। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रमेश चेन्निथला ने तो पार्टी हाई कमान को इसपर एक चिट्ठी तक लिख दी है। चिट्ठी में लिखा है कि इस नए मंत्रालय के जरिये केरल, कर्नाटक और महाराष्ट्र से लेकर बंगाल तक की सहकारी संस्थाओं में भाजपा का प्रभाव बढ़ाने की तैयारी है।
जानकार बता रहे हैं कि कांग्रेस जल्द ही इसको लेकर विपक्षी खेमे के साथ साथ दूसरे दलों से चर्चा करेगी। उनसे बातचीत की यह प्रक्रिया मानसून सत्र से पहले पूरी की जाएगी ताकि अपने अपने सहकारी बैंकों को बचाया जा सके। चेन्निथला ने कहा है कि भाजपा का यह कदम पैसे से मजबूत सहकारी संस्थाओं को अपने प्रभाव में लेने की कोशिश का हिस्सा है। केरल और महाराष्ट्र में वित्तीय रूप से मजबूत सहकारी संस्थाओं का बहुत बड़ा नेटवर्क है। महाराष्ट्र में सहकारी संस्थाओं पर जहां राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की मजबूत पकड़ है, वहीं केरल में माकपा और कांग्रेस का अपना-अपना प्रभाव है।
चेन्निथला के मुताबिक भाजपा केरल और महाराष्ट्र में सहकारी संस्थाओं की राजनीति में अपनी पैठ बनाने में नाकाम रही है और इसके मद्देनजर ही नए मंत्रालय का गठन किया गया है। केरल की पिछली विधानसभा में नेता विपक्ष रहे चेन्निथला के मुताबिक अमित शाह को यह मंत्रालय सौंपे जाने से स्पष्ट है कि भाजपा के लिए यह कितना महत्वपूर्ण है। उनका यह भी मानना है कि केरल-महाराष्ट्र के अलावा कर्नाटक, बंगाल और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में सहकारी समितियां व्यापक जनआंदोलन का हिस्सा बनकर उभरी हैं और इनके ढांचे का स्वरूप भी धर्मनिरपेक्ष है।