Taliban in Kabul: कभी अपनी ताकत के दम पर जबरदस्ती अफगानिस्तान में घुसने वाला अमेरिका के पैर अफगानिस्तान से उखड़ गए हैं। राष्ट्रपति भवन पर तालिबानी आतंकियों के कब्जे के बाद अमेरिका ने अपने दूतावास के अधिकारियों और नागरिकों को वहां से निकालने के लिए हेलीकॉप्टर दूतावास में उतार दिए।
सवाल ये उठ रहा है कि जिस अफगानिस्तान पर कब्जे में अमेरिका ने पूरी ताकत लगा दी थी, उसपर दोबारा कब्जा करने में तालिबानी आतंकियों को महज एक हफ्ता ही लगा, क्या अमेरिका के पीछे हटते देख सरकारी सेनाओं ने पहले ही हथियार डाल दिए थे। हालांकि अब अमेरिका अपने 6000 सैनिकों तैनात करने जा रहा है।
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक अमेरिकी दूतावास से कर्मियों को निकालने के लिए हेलीकॉप्टर आसमान में लगातार दिख रहे थे। साथ ही, दूतावास के परिसर में धुआं उठते भी देखा गया था, क्योंकि कर्मचारी महत्वपूर्ण दस्तावेजों को जला रहे थे। दूसरी ओर, पश्चिमी के कई अन्य देशों के दूतावास भी अपने लोगों को हेलीकॉप्टर के जरिए बाहर निकालने के लिए तैयारी में हैं। भारत ने अपने नागरिकों को कल ही बाहर निकाल लिया था।
दरअसल अफगानिस्तान में अमेरिका और नॉटो ने लगभग दो दशकों में सुरक्षा बलों को अफगानिस्तान में लड़ने और तैनात रखने में अरबों डॉलर खर्च किए। साथ ही इस लड़ाई में 22सौ से ज्य़ादा अमेरिकी फौजी मारे गए। लेकिन जिन तालिबान को काबुल से भगाने में लंबा समय अमरिकियों को लगा था, उन्हें वापस काबुल पर कब्जे में आश्चर्यजनक रूप से एक सप्ताह लगा। हालांकि एक अमेरिकी सैन्य आकंलन में बताया गया था कि काबुल पर तालिबान कब्जे में एक महीना लगेगा। लेकिन तालिबान आतंकियों के सामने अफगानिस्तान की सरकारी फौजों ने लगभग आत्मसमर्पण कर दिया था। हालांकि कुछ जगहों पर जरूर अमेरिकी एयरस्ट्राइक हुआ था।