Religious Education in Assam: असम के गोहाटी हाईकोर्ट (Gauhati High Court Assam) ने कहा है कि सरकार से फंड लेकर शिक्षण संस्थान धर्म की शिक्षा नहीं दे सकते हैं। 4 फरवरी (शुक्रवार) को अपने फैसले में हाईकोर्ट ने राज्य के वित्तपोषित सभी मदरसों को सामान्य स्कूलों में बदलने के हेमंता बिस्व शरमा सरकार के फैसले को सही ठहराया है। मदरसों के लिए जमीन देने वाले 13 मुत्तवली (दानदाता) की याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया है।
असम सरकार ने विधानसभा में असम रिपीलिंग एक्ट 2020 पास किया था। इसी कानून के आधार पर सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों को सामान्य विद्यालयों में बदलने का फैसला लिया था। इस एक्ट के तहत मदरसा शिक्षा (प्रांतीयकरण) अधिनियम- 1995 और असम मदरसा शिक्षा (कर्मचारियों की सेवाओं का प्रांतीयकरण और मदरसा शैक्षिक संस्थानों का पुनर्गठन) अधिनियम- 2018 को समाप्त किया गया था। हाईकोर्ट ने कहा कि विभिन्न धर्मों वाले भारत में सरकार को धार्मिक मामलों में तटस्थ होना चाहिए। कोर्ट ने कहा, “हम लोकतंत्र में और संविधान के अंतर्गत रहते हैं, जहाँ हर नागरिक एक बराबर है। इसलिए हमारे जैसे बहुधर्मी समाज में राज्य सरकार के किसी एक धर्म को वरीयता देना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है। इस तरह एक धर्मनिरपेक्ष राज्य सुनिश्चित करे कि सरकार के फंड से किसी भी संस्थान में धार्मिक शिक्षा नहीं देनी चाहिए। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सुधांशु धूलिया और जस्टिस सौमित्र सैकिया की पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि जो विधायिका और कार्यपालिका की ओर से बदलाव हुए हैं, वो केवल सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों के लिए है, न कि निजी अथवा सामुदायिक मदरसों के लिए।