Who killed Lavanya: तंजावुर में लवण्या की आत्महत्या मामले में तमिलनाडू पुलिस (Tamilnadu Police) और स्थानीय प्रशासन सच छुपाने में लगे हुए हैं। राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (NCPCR) की टीम ने अपनी जांच रिपोर्ट में पाया है कि जब बच्ची ने स्कूल के भीतर ही ज़हर खा लिया था तो उस समय मिशनरी स्कूल प्रशासन (Missinory school administration) ने बच्ची को ना तो इलाज के लिए डॉक्टर को दिखाया और ना ही अस्पताल लेकर गए। बल्कि उन्होंने बच्ची के परिवार को बुलाया और पहले फीस जमा कराई, उसके बाद बच्ची को इलाज के लिए परिवार को लेकर जाने दिया। बाद में इस बच्ची की मौत हो गई। बड़ी बात ये है कि ये एक स्कूल हॉस्टल नहीं है, बल्कि अनाथालय है। जिसमें कानून को अंधेरे में रखकर स्कूल हॉस्टल चलाया जा रहा था।
एनसीपीसीआर चेयरमैन प्रियंक कानूनगो (NCPCR Chairman Priyank Kanoongo) के मुताबिक हमको अपने इंवेस्टिगेशन में पुलिस की रिपोर्ट में खामियां मिली है। बच्ची के मृत्यु पूर्व बयान में साफ साफ जिक्र है कि उसको फोर्स किया गया था कि वो कंवर्ट हो। पुलिस ने अपनी जांच रिपोर्ट में इसका कोई जिक्र नहीं किया है। पुलिस अपनी जांच रिपोर्ट को थोपने की कोशिश में लगी थी कि बच्ची ने अपने परिवार की परेशानियों के कारण आत्महत्या की है। जबकि हमने बच्ची के परिवार, भाइयों, रिश्तेदारों से बात की, गांव के लोगों से भी बात की। इसमें हमें कोई भी ऐसे फैक्ट्स नहीं मिले की बच्ची को परिवार से कोई परेशानी थी। साथ साथ हमें ये भी समझ आया कि जब बच्ची ने ज़हर खा लिया था तो उसकी तबीयत बिगड़ने लगी तो स्कूल ने उसको डॉक्टर को नहीं दिखाया, उसको अस्पताल में भी नहीं लेकर जाया गया। उसके परिवार से उसकी मां ने स्कूल में फीस जमा की, तब जाकर बच्ची को अस्पताल के लिए लेकर जाने दिया गया। दूसरी ओर पुलिस, स्कूल और प्रशासन मिलकर इस मां को ही बच्ची को प्रताड़ित करने वाली बनाने में लगी हुई है।
अनाथलय को बनाया गया स्कूल हॉस्टल
दरअसल जिस स्कूल हॉस्टल में लवण्या को रखा गया था, वो एक अनाथालय था, जिसको स्कूल हॉस्टल की तरह इस्तेमाल किया जा रहा था। जोकि सरासर जे जे एक्ट का उलंघघन है। एनसीपीसीआर चेयरमैन प्रियंक कानूनगो ने बताया कि इस दौरान जांच में हमे पता चला कि तमिलनाडू सरकार ने अपना एक कानून बनाया हुआ है, जोकि संविधान की मूल भावना के ही खिलाफ है।
10वीं में पहला रैंक आने के बाद ईसाई बनाने पर तुला स्कूल
एनसीपीसीआर की रिपोर्ट के मुताबिक जब लवण्या ने 10वीं क्लास में पहला रैंक हासिल किया तो वहीं से स्कूल प्रशासन ने लवण्या और पूरे परिवार को ईसाई बनाने के लिए दबाव डालना शुरु कर दिया था। जानकारी के मुताबिक अगर स्कूल में फर्स्ट आने वाला बच्चा ईसाई हो तो इससे बाकी बच्चों और परिवारों को ईसाई बनाने में आसानी होती है। लिहाजा पूरा स्कूल प्रशासन अक्सर ऐसा पहले भी करता रहा है।
पुलिस ने धर्मांतरण को एफआईआर में नहीं किया शामिल
पुलिस का रोल इस मामले में बेहद ही एकतरफा रहा है। पुलिस इस मामले को घरेलू बताकर इस आत्महत्या को अलग रूप देना चाहती है। जबकि पुलिस ने इसमें कहीं भी धर्मांतरण का जिक्र नहीं किया है। दूसरी ओर एनसीपीसीआर की टीम ने इस मामले में जांच कर पाया है कि बच्ची ने स्कूल के धर्मांतरण के दबाव में ही आत्महत्या की है। इससे पहले बच्ची ने भी अपने बयान में साफ कहा था कि उसको जबरदस्ती ईसाई बनाने की कोशिश स्कूल कर रहा था। लिहाजा उसने ज़हर खाया था।