Sri Ram: श्री राम भारत की आत्मा है

डॉ. सरवन सिंह बघेल         

Sri Ram: भारत में भगवान राम का अर्थ सिर्फ भगवान नही वह भारत के जन जन का आदर्श और राष्ट्र की आत्मा है। वो सिर्फ हिन्दुओ के देवता नही है वो एक विचार है। जो भारत के जन जन में व्यापत है। भारत के संविधान में भी श्री राम के चित्र की अहमियत को वर्णित किया गया है। भारतीय पुराणिक मान्यताओ के अनुसार श्री राम को सबसे उत्तम मर्यादा पुरुषोत्तम पुरुष कहा गया है। उनका व्यक्तित्व आदर्शो से परिपूर्ण था। राम के आदर्शमय जीवन से राम का व्यक्तित्व समझा जा सकता है। उनका जीवन आदर्श गुणों से युक्त था जो अमूमन आम व्यक्तित्व में दिखाई नही देता है। वह गुणवान, प्रशंसक, सकारात्मक चिन्तक, धर्मज्ञ, कृतज्ञ, सत्यवादी, दृढप्रतिज्ञ, सदाचारी, सहयोगी, विद्धान, सामर्थ्यशाली, प्रिय दर्शन, जिन्तेद्रिया, शांत, सहज, सरल, कान्तिमान, वीर्यवान, धैर्यशील और साहसी थे।

          इस युग को हम कलयुग न भी माने तो इस आधुनिक युग में प्राचीन समय की अपेक्षा विज्ञान और भौतिक सुविधाओं का विस्तार हुआ है परन्तु मनुष्य की नैतिकता का पतन भी धीरे धीरे हुआ है। रिश्ते नाते अब औपचारिक रह गए है। सबकुछ स्वार्थ और धन पर आश्रित हो गया है। धर्म का धीरे धीरे क्षरण हो रहा है। अब एक कहावत सार्थक हो रही है कि राम को खोजना दुर्भर है परन्तु रावण हर जगह दिखाई पड़ रहे है। ऐसे में इस आधुनिक युग में श्री राम की प्रासंगिकता बढ़ जाती है। अगर हमें श्री राम को आस्था के साथ वैज्ञानिक और संविधानिक पहलू से समझना है तो हमें जीवन को गहराई से समझना होगा। पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों के प्रति श्री राम समर्पित थे। वह एक आदर्श पुत्र होने के साथ ही आदर्श पति और भाई भी थे। उस समय में लोग बहुविवाह करते थे और राजसत्ता पाने के लिए रिश्तों की परवाह भी नही करते थे। राजा दशरथ और दशानन रावण ने भी बहु विवाह किये। वानरराज बाली और राक्षसराज रावण ने अपने भाइयों का सदैव अनादर किया। परन्तु श्री राम ने अपने रिश्तों के दायित्व को भलीभांति निभाया और उनके प्रति पूर्ण समर्पण रखा। वर्तमान समय में हमें भगवान राम से यह सीखना चाहिए। आपस में भाईचारा, रिश्तों को संभालने की कला और मानव कल्याण में कैसे अपनी भागीदारी दी जा सकती है। आज समाज में संयुक्त रहने वाले परिवार खंडित हो रहे है। इनके खंडित होने से भारतीय संस्कृति का भी ह्रास हो रहा है। आज हर माँ बाप चाहते है कि उनका बेटा राम जैसा हो, हर पत्नी चाहती है कि उसका पति राम जैसे आदर्श चरित्र को धारण करता हो। हर भाई और बहन चाहते है कि उनका भाई राम की तरह उनकी सुरक्षा और संभाल करें। यही वजह कि युग बीत जाने के बावजूद भी श्री राम के आदर्शों को आज भी याद किया जाता है। आज भारत में हम प्रजातंत्र की बात करते है। हमारा संविधान हमें लोकतंत्रीय व्यवस्था का हिस्सा बनाता है। श्री राम की राजकीय कार्यव्यवस्था लोकतन्त्र पर आधारित थी। श्री राम ने अपने व्यक्तित्व को इस प्रकार व्यवस्थित किया था कि आज भी उनके कार्य, निर्णय और शासन को याद किया जाता है। राम के पास अनंत शक्तियां थी परन्तु उनका उपयोग उन्होंने प्रजा की भलाई के लिए किया ना कि उनके विरुद्ध। परन्तु रावण ने अपनी दैवीय शक्तियों का दुरूपयोग किया। रावण ने शक्तियों का प्रदर्शन किया परन्तु राम ने मर्यादा और विनम्रता का। राम ने अपना सम्पूर्ण जीवन यह सोचकर जीआ कि अगर मैंने गलत राह चुनी तो सम्पूर्ण जग कहीं अधर्म के मार्ग पर ना चल दे। उन्होंने हमेशा लोकतंत्र, लोकमत और प्रजा की भलाई के लिए ही कार्य किया। वर्तमान नेतृत्वकर्ताओ, शासनकर्ताओ और राजनीतिज्ञ व प्रशासनिक लोगो को उनसे सीख लेनी चाहिए। श्री राम की कार्यप्रणाली का दूसरा नाम लोकतंत्र है। रामराज्य में किसी को अकारण दंड नही दिया जाता था और ना ही लोगो में भेदभाव और पक्षपात किया जाता था।

          श्री राम की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक खूबी यह थी कि वह कार्यों का विभाजन करते थे। दूसरों सक्षम और सशक्त बनाने के लिए वह नेतृत्व का मौका उन्हें देते थे। वह उनमें लीडरशिप के गुणों को विकसित करने में और स्वंतंत्र निर्णय लेने में सहायक की भूमिका निभाते थे। जब वह वनवास पर अयोध्या से निकले तो वह दो लोगो के समूह के साथ निकले। उनकी धर्मपत्नी माता सीता और उनके भाई लक्ष्मण उनके साथ थे। तीनों ने मिलकर वन जीवन में टीम वर्क के साथ कार्य किया और जरुरत पड़ने पर श्री राम ने नेतृत्व को हस्तांतरित भी किया। उन्होंने सभी को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उनके स्किल्स या गुणों के विस्तार पर कार्य किया। श्री राम ने रणनीति, मूल्य, विश्वास, प्रोत्साहन, श्रेय, दूसरों की बातों को ध्यान और धीरज से सुनना और पारदर्शिता को अपने सामने रखा और अपने वनवास काल में एक बड़ी टीम को जोड़कर सभी को नेतृत्व करने का मौका दिया। भरत, लक्ष्मन, सुग्रीव, अंगद, हनुमान, जाम्वत, नल-नील, विभीषण आदि सभी उसके उदाहरण है। हर संस्थान को, राजनीतिक पार्टी, प्रशासनिक और शासन के कार्यालयों सहित देश के हित में कार्य करने वालें संगठनो को उनकी इस कार्यप्रणाली और विश्वास करने की नीति को अपनाना चाहिए। राम की विशेषता थी कि वह समस्याओं में भी समाधान खोज लेते थे। उनके समक्ष बहुत बार मुश्किल हालात पैदा हुए जिससे उनकी टीम में निराशा का वातावरण बन गया लेकिन उन्होंने धैर्य से काम लेकर उन समस्याओ का समाधान खोजा और फिर उसके क्रियान्वयन में अपनी सम्पूर्ण बौद्धिक और शारीरिक कौशल की ताकत झौक दी। उन्होंने सीता जी के हरण से लेकर और लक्ष्मण के मूर्क्षित हो जाने तक कई प्रकार के मानसिक और शारीरिक संकटों का सामना किया लेकिन उनके नेतृत्ववाली उत्साही टीम ने उन पर विजय पा ली। संकट भी उसी व्यक्ति के समक्ष खड़े होते है जो उनका हल जानता है।

          यह सर्वज्ञात है कि राजा दशरथ (राम जी के पिता) के आदेश पर उन्होंने अयोध्या की राजगद्दी का त्याग कर दिया था। संकटों के काल में भी उन्होंने सादा जीवन और भौतिक सुखों से दूर रहकार जीवन जीआ जा सकता है यह सन्देश समाज को दिया। उन्होंने महलों से दूर गुरुकुलों में शिक्षा-दीक्षा ली। गुफ़ाओ में रहकर कंदमूल फल खाकर गुजारा किया। उन्होंने आदिवासियों और वनवासियों को धनुषबाण की शिक्षा देने के साथ साथ उन्हें धर्म शास्त्र और नैतिक शास्त्र की भी शिक्षा दी। भील माता शबरी के जूठे बेरों को प्रेम से खाना, निषादराज केवट को गले लगाना, जटायु का अंतिमसंस्कार, वानर, भालू, रीछ जैसी जनजातियों को प्यार और सम्मान देकर उन्हें अपना बनाना और उन सभी के जीवन में उत्साह का संचार करना तो कोई राम से सीखें। आधुनिक युग के मनुष्य में त्याग की भावना का ह्रास है जबकि त्याग मनुष्य को महान और लोकप्रिय बनाता है

          इसी कारण संविधान सभा ने भगवान राम को आदर्श मानते हुए भारतीय संविधान में उन्हें स्थान दिया है। इसकों निम्न प्रकार से समझ सकते है। संविधान सभा में जब भारत के नए संविधान की रचना अंतिम चरण में थी, तब डॉ. भीमराव बाबासाहेब अंबेडकर द्वारा प्रस्तुत ड्राफ्ट के पारित होते ही संविधान की मुख्य प्रतिलिपि  में कला-कृतियों के चित्रण पर चर्चा हुई। इस कार्य हेतु सर्व सम्मति से उस समय के प्रसिद्ध चित्रकार श्री नन्दलाल बोस, शांति निकेतन को अधिकृत किया गया। बोस एवं उनकी टीम ने भारतीय इतिहास के चुनिंदा महात्माओं, गुरुओं, शासकों एवं पौराणिक पात्रों को दर्शाते हुए विभिन्न चित्रों को संविधान के अलग-अलग भागों में सजाया। प्रत्येक चित्र अपने स्थान पर भारतवर्ष की अनंत विरासत से एक सन्देश और उद्देश्य को व्यक्त करता है। संविधान का भाग 3, जिसमें हमारे मौलिक अधिकार पर चर्चा हैं, पर श्री राम, सीता जी एवं लक्ष्मण जी का चित्र है। यह समझना आवश्यक होगा कि क्यों संविधान के इस भाग में श्री राम का चित्रण ही सबसे उपयुक्त चयन है? भारतीय संविधान के लागू होते ही, समस्त अधीन प्रजा जनों को उनके मौलिक अधिकार प्राप्त हुए। लगभग 800 वर्षों के विदेशी शासकों के उपरांत यह पहला अवसर था जब विस्तृत रूप से पूरे राष्ट्र को स्वराज मिला था। मौलिक अधिकारों के लागू होते ही सभी नागरिकों को देश में विभिन्न प्रकार के भेदभावों से मुक्ति मिली। अनुच्छेद 14 में समानता के अधिकार के अनुसार संविधान एवं कानून के समक्ष धनी अथवा निर्धन, शक्तिशाली अथवा कमजोर सब सामान हैं। अनुच्छेद 21 में ‘प्राण और दैहिक स्वतंत्रता’ अर्थात जीने के अधिकार  के अंतर्गत सभी को सम्मान पूर्वक जीवन यापन के साथ-साथ मृत्यु के पश्चात गरिमामय अंतिम संस्कार का भी अधिकार प्राप्त है। समानता का अधिकार ये भी कहता है कि किसी विवाद की स्थिति में हर व्यक्ति को न्यायिक प्रक्रिया में स्वयं का पक्ष पूर्ण रूप से प्रस्तुत करने का पूरा अधिकार है। भारत का संविधान किसी के अधीन न होकर अपने नागरिकों के अधिकारों का एक स्वतंत्र एवं सार्वभौम संरक्षक हैं। श्री राम का दयालु एवं निष्पक्ष व्यक्तित्व सर्व विदित है, साथ ही उनके राम-राज्य की परिकल्पना में भी मानव जीवन के ये भाव आत्मसात है। विभिन्न रामायणों एवं लोक कथाओं में हमें प्रजा के प्रति श्री राम के अपारंगत एवं मानवीय मनोभावों के दर्शन होते हैं, जो हमारे आज के संविधान के मूल्यों के सदृश्य हैं। श्री राम ने उस समय जातिगत भेदभाव किये बिना अपने से अवर जाति के निषादराज से मित्रता की। उन्हें वही सम्मान दिया जो उनके बाकी राज मित्रों को मिला। रंगभेद या नस्ल भेद को अस्वीकार करते हुए रघुनन्दन ने एक भीलनी शबरी माता के झूठे बेर स्वीकारे। एक राजा के रूप में वह अपने अधीन प्रजा को सामान रूप से देखते हुए उनके अधिकारों के संरक्षक थे। उन्होंने अपने शत्रु एवं मानवीय प्रवित्ति के विरोधियों (रावण और ताड़का) का युद्ध में वध करने के पश्चात् उनका ससम्मान अंतिम संस्कार सुनिश्चित किया। जब श्री राम को यह पता चला कि महाराज दशरथ ने उनका राज्याभिषेक घोषित कर दिया है, तो यह बात सुनते ही उनका पहला प्रश्न था कि उनके तीन भाइयों के लिए क्या सुनिश्चित किया गया है? वे मानते थे की उनके भाइयों का भी अयोध्या राज पर समान अधिकार है और उन्हें भी बराबर राज्य मिलने चाहिए। अनुच्छेद 15 इसके लिए निहित प्रावधानों द्वारा राजकीय व गैर-राजकीय व्यक्ति एवं संस्थाओं को नागरिकों के मध्य भेदभाव के बिना समान व्यवहार करने हेतु बाध्य किया गया है। एक और प्रसंग के अनुसार करुणानिधान श्री राम ने किन्नरों की उनके प्रति श्रद्धा और समर्पण को देखते हुए उन्हें वरदान दिया था। युद्ध की परिस्थितियों में भी उन्होंने शत्रु राज्य से आये अनुयायियों को शरण दे कर उनकी रक्षा का आश्वासन दिया था। जब विभीषण श्री राम से मिलने आये तो सुग्रीव ने उन्हें चेताया कि विभीषण शत्रु का भाई है। श्री राम ने उन्हें समझाते हुए कहा कि उनसे न्याय मांगने आये हर व्यक्ति के पक्ष को सुनने और उसकी रक्षा करना उनका स्वभाव व धर्म दोनों है। उस समय की व्यवस्था के अनुसार वह स्वयं भी अपने राज धर्म एवं मानव धर्म से परिबद्ध थे, जिसकी तुलना आप आज के ‘रूल ऑफ़ लॉ’ से कर सकते हैं। शक्तिशाली, लोकप्रिय एवं राजा होने के बाद भी कभी श्री राम ने निर्धारित नियमों का उल्लंघन नहीं किया न ही स्वयं को धर्म से ऊपर रखा। जब हम राम के शासन की आकांक्षा करते हैं तो हमारा तात्पर्य होता है – ‘रामराज्य’, न कि ‘रामराज’। किसी राजा की उपस्तिथि में सुशासन होना उस राजा के कौशल की सफलता है। किन्तु ‘राज्य’ की सफलता किसी राजा के ‘राज’ के कालखंड की सफलता से भिन्न है। राम के राज्य का अर्थ है प्रजाहित में सुरक्षित, संपन्न, प्रगतिशील व सकारात्मक राज्य की स्थापना। इसी प्रकार हमारे संविधान ने भी भारत को व्यक्ति केंद्रित ‘राज’ तक सीमित नहीं रखा है। अपितु संविधान एक ‘प्रजा केंद्रित’ राज्य को स्थापित करता है। एक ऐसा सकारात्मक व प्रगतिशील राज्य जिसकी परिकल्पना राम के आदर्शों का प्रतिविम्ब ही है। यह स्वीकारना गलत नहीं होगा कि भारत के सांस्कृतिक, नैतिक और राजनैतिक मूल्यों के आदर्श श्री राम का व्यक्तित्व एवं जीवन दर्शन हमारे संवैधानिक मूल्यों के समरूप है। तेजस्वी सूर्या और सुयश पाण्डे के शोध का सन्दर्भ लेते हुए संविधान का आधार माना गया है

          आज भी भगवान राम को लेकर अलग-अलग प्रकार की बहस समाज के अन्दर होती रहती है। कुछ का मानना है कि श्री राम भगवान नही थे वो भारत के राजा था। कुछ तथाकथित बुद्धिजीविओं का कहना है कि भगवान राम, वाल्मीकि कृत रामायण के एक काल्पनिक पात्र थे। वे कभी हुए ही नही थे ऐसी चर्चा करने वाले भी आपको समाज में कई लोग मिल जाएँगे। भगवान राम के खिलाफ फर्जी के तर्क जुटाकर कई पुस्तकें लिखी गई। इन पुस्तकों को लिखने में वामपंथी और धर्मान्तरित लोगों ने काफी भाग लिया। तर्क से सही को गलत और गलत को सही सिद्ध किया जा सकता है। तर्क की बस यही ताकत है। इन फर्जी तथ्यों से भरी हुई पुस्तकों के आधार पर श्री राम की आलोचना करने का भरपूर प्रयास इन तथाकथित बुद्धिजीविओं द्वारा करने का प्रयास किया गया है। उनकी आलोचना स्वागत योग्य है। जो व्यक्ति हर काल में जिन्दा रहें या उससे लोगों को खतरा महसूस होता हो, आलोचना उसी की होती है मृत लोगों की नही। जिस व्यक्ति की आलोचना नही होती वो इतिहास में कहीं खो जाते है। आलोचकों के कारण राम पौराणिक थे या ऐतिहासिक इस पर शोध हुए और हो रहे हैं। सबसे पहलें इतिहासकार कामिल बुल्के ने भगवान राम की प्रमाणिकता पर शोध किया। उन्होंने पूरी दुनिया में रामायण से जुड़े तीन सौ तथ्यों की पहचान की। श्री राम के बारें में दूसरा शोध चेन्नई की एक गैर सरकारी संस्था भारत ज्ञान द्वारा पिछलें छ: वर्षों में किया गया है। उनके अनुसार इस वर्ष 10 जनवरी को श्री राम के जन्म के 7122 वर्ष पूर्ण हो चुकें है। उस संस्था का मानना था कि राम एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे और इसके पर्याप्त प्रमाण है। उनका मानना है कि श्री राम का जन्म 5114 ईस्वी पूर्व हुआ था। वाल्मीकि रामायण में लिखी गई नक्षत्रों की गणना को प्लेनेटेरियम नामक सॉफ्टवेयर से गणना की गई तो सम्बंधित दिनांक का पता चला। प्लेनेटेरियम एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जो आगामी सूर्य और चन्द्र ग्रहण की भविष्यवाणी कर सकता है। मुंबई में अनेक वैज्ञानिकों, इतिहासकारों, व्यवसाय जगत की हस्तियों के समक्ष इस शोध को प्रस्तुत किया गया था। और इस शोध संबधित विषयों पर प्रकाश डालते हुए इसकें संस्थापक सदस्य डी.के. हरी ने एक समारोह में जानकारी दी थी कि इस शोध में वाल्मीकि रामायण को मूल आधार मानते हुए अनेक शोधकर्ताओं, इतिहासकारों, भौगोलिक, ज्योतिषिक और पुरातत्ववेत्ताओं की मदद ली गयी थीइस समारोह का आयोजन भारत ज्ञान संस्था और आर्ट ऑफ़ लिविंग ने साथ मिलकर किया गया था।  कुछ अन्य विशेषज्ञों का मानना है कि भगवान राम का जन्म आज से लगभग 9000 वर्ष पूर्व (7323 ई.पूर्व) चैत्र मास की नवमी को हुआ था

          कुछ वर्ष पूर्व वाराणसी स्थित श्रीमद् आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य शोध संस्थान के संस्थापक स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती ने भी अनेक संस्कृत ग्रंथो के आधार पर राम और कृष्ण की ऐतिहासिकता को स्थापित करने का कार्य किया था। पद्म विभूषण जगदगुरू स्वामी श्री रामभद्राचार्य जी ने अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर के संबन्ध में चार सौ से अधिक प्रमाण सुप्रीम कोर्ट को दिए गए थे। उन्होंने प्राचीन ग्रंथों के प्रमाणिक उद्धरण प्रस्तुत किये थे। रामभद्राचार्य जी ने दावे के साथ कहा था कि वाल्मीकि रामायण के बाल खंड के आठवें श्लोक से श्रीराम जन्म के बारे में जानकारी शुरू होती है। यह सटीक प्रमाण है। इसके बाद स्कंद पुराण में राम जन्म स्थान के बारे में बताया गया है। राम जन्म स्थान से तीन सौ धनुष की दूरी पर सरयू माता बह रही हैं। एक धनुष चार हाथ का होता है। आज भी यदि नापा जाए तो जन्म स्थान से सरयू नदी उतनी ही दूरी पर बहती दिखेगी। इसके पूर्व अथर्व वेद के दशम कांड के इकतीसवें अनु वाक्य के द्वितीय मंत्र में स्पष्ट कहा गया है कि आठ चक्रों व नौ प्रमुख द्वार वाली श्री अयोध्या देवताओं की पुरी है। उसी अयोध्या में मंदिर महल है। उसमें परमात्मा स्वर्ग लोक से अवतरित हुए थे। ऋग्वेद के दशम मंडल में भी इसका प्रमाण है। तुलसी शतक में कहा है कि बाबर के सेनापति व दुष्ट यवनों ने राम जन्मभूमि के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का ढांचा बनाया और बहुत से हिंदुओं को मार डाला। तुलसीदास ने तुलसी शतक में इस पर दुख भी प्रकट किया था। मंदिर तोड़े जाने के बाद भी हिंदू साधु रामलला की सेवा करते थे। इस पूरे प्रसंग से रामभद्राचार्य जी की विलक्षण प्रतिभा का अनुमान लगाया जा सकता है। उनका अध्ययन अद्भुत है। इसके अलावा नेपाल, लाओस, कम्पूचिया, मलेशिया, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका, बाली, जावा, सुमात्रा और थाईलैंड आदि देशों की लोकसंस्कृति व ग्रंथो में आज भी राम जिन्दा है। विश्वभर में बिखरे शिलालेख, भित्ति चित्र, सिक्के, रामसेतु अन्य पुरातत्विक अवशेष, प्राचीन भाषायों के ग्रन्थ आदि से भगवान राम के होने की पुष्टि होती है

          भगवान राम भारत की आत्मा है। श्री राम की कार्यप्रणाली कलयुग में भी प्रासंगिक है क्योकि आज दुनियाभर में आंतकी और मलेच्छ शक्तियां सिर उठा रही है। मानवता को परेशान कर रही है। इस बढ़ती अराजकता और आतंकी शक्तियों के नाश का सामर्थ्य सिर्फ और सिर्फ श्री राम के विचारों में है। श्री राम ने असुरी शक्तियों का विनाश करके मानवता की रक्षा की थी। सीता जी जब हरण रावण ने कर लिया तो राम के निकट बड़ा संकट खड़ा हो गया था। वह जंगल और पहाड़ों में उन्हें खोज रहे थे। उन्होंने अपने बुद्धि और कौशल से उनके हरणकर्ता और स्थान का पता लगाया। उन्होंने सीता जी को मुक्त कराने के लिए अलग अलग मतों के लोगों से गठबंधन किया। उन्होंने बाली को समाप्त करके सुग्रीव का समर्थन हासिल किया। इसी प्रकार उन्होंने कई राजाओं की मदद की। राम और रावण युद्ध के समय उनके पास अयोध्या की सेना नही थी। उन्होंने वानर और आदिवासी समाज के सहयोग से यह युद्ध लड़ा और सीता जी को मुक्त कराया। इसमें महत्वपूर्ण बात यह थी कि यहाँ न वेतन था, न वर्दी, न विशेष हथियार फिर भी राम के रणनीतिक युद्ध कौशल से वह यह युद्ध जीते। कम संसाधन और कम सुविधायों और भारी संघर्ष के बावजूद उन्होंने पत्थर का पुल बनाकर लंका में प्रवेश किया और रावण का अंत किया। भगवान राम मिथ्या नही एक प्रमाण है भारत की प्राचीन संस्कृति और इतिहास का|                          

                                                                                               

लेखक सामाजिक और राजनीतिक विश्लेषक हैं

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