Power Crisis: देश में बिजली संकट के लिए राज्य सरकारों की लापरवाही जिम्मेदार है, जिन्होंने ना तो अपना कोयला समय पर उठाया और केंद्र सरकार के आयातित कोयले (Coal Import ) को घरेलू कोयले के साथ मिक्स करने (Blending of Domestic Coal) के निर्देश के बावजूद कोयला आयात करना मुनासिब नहीं समझा, अब जब गर्मी की वजह से बिजली संकट की स्थिति (Power Crisis due to Hot Weather ) बन रही है तो राज्य सरकारें केंद्र सरकार पर आरोप मढ रही है।
केंद्र सरकार पिछले एक महीने से राज्यों को कोयला आयात करने के लिए कह रही है, ताकि आयातित कोयले पर आधारित पावर प्लांट्स को चलाया जा सके। लेकिन राज्य सरकारें ना तो इन प्लांट्स को बढ़ी हुई बिजली के दाम देने को तैयार है और ना ही इन प्लांट्स को कोयला खरीदकर देने को तैयार है। साथ ही राज्यों ने पिछले महीने तक अपना पूरा स्टॉक भी नहीं उठाया है।
दरअसल देश में करीब 17000 मेगावाट से ज्य़ादा के आयातित कोयले पर चलने वाले थर्मल प्लांट्स हैं। लेकिन रूस और यूक्रेन की जंग ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोयले के दाम 300 डॉलर प्रति टन के पार पहुंचा दिए हैं। जबकि पिछले साल ये 50 डॉलर प्रति टन पर चल रही थी। इसलिए राज्य ना तो कोयला खरीदकर दे रहे हैं और ना ही बढ़ी हुई बिजली की कीमतें देने को तैयार हैं। इसलिए ये प्लांट अपनी क्षमता से आधे पर चल रहे हैं। इससे बिजली की उपलब्धता काफी कम हो गई है।
केंद्र ने राज्यों को 10 परसेंट तक आयातित कोयला ब्लैंड घरेलू कोयला में मिलाकर बिजली उत्पादन करने के लिए कहा था। ताकि किसी एक सोर्स के ऊपर सभी प्लांट निर्भर ना करें। इससे बिजली की कीमतों में कोयले की अभी की कीमत पर 30-40 पैसे ज्य़ादा देना पड़ेगा। लेकिन राज्य इसके लिए भी तैयार नहीं है।
सूत्रों का कहना है कि अप्रैल में सिर्फ 17.5 लाख टन कोयला विदेशों से आयात किया गया। मई में 35 लाख टन कोयला आयात का आर्डर अभी दे दिया गया है। इससे अगले कुछ दिनों में बिजली की स्थिति कुछ सुधरेगी।