Singer KK: मरहूम केके मेरे दौर का गायक था.. वो उस पीढ़ी का गायक था, जो 90 के दशक में जवान हो रही थी और नए मिलेनियम में जिसने नई सांस फूंकी। उस बन्दे की आवाज़ किसी ताज़ा हवा के झोंके की मानिंद थी, जो अलसाए जिस्म में फुर्ती सी भर सकती थी। उसने पहले से स्थापित गायकों के बीच में मशक्क़त से जगह बनाई और शान इस बदलाव में उसका साथी था। बहुत समय पहले केके ने एक इंटरव्यू में कहा था कि एक दौर ऐसा भी था, जब फ़िल्मों में गाना मिलना बहुत मुश्किल था। सोनू निगम तक को दूसरे गायकों के छोड़े हुए गीत गाने पड़ रहे थे। तो ऐसे में शान-केके जैसे नए लड़के पहली पसन्द बनते ये मुमकिन नहीं था।
पर जवानी सब-कुछ बदल देती है.. दौर भी और पसन्द भी। कुछ ही साल बाद हम ‘दिल चाहता है’ के एक गाने ‘हम है नए अंदाज़ क्यों हो पुराना’ में केके और शान को नौजवानों में नया जोश भरते सुन रहे थे। वो नए दौर की आवाज़ थे.. मेरी आवाज़ थे। एकदम नए एटीट्यूड और नए अंदाज़ वाले गायक। मेरे हिसाब से तो केके शान से भी बेहतर थे। शान की अपनी ख़ूबी है मगर कुछ सीमा भी है। केके की रेंज उसे सीमाओं से भी बाहर जाने की आज़ादी देती है।
इस बन्दे का पहला फ़िल्म सॉन्ग अपने ज़ेहन में याद कीजिये। फ़िल्म थी ‘माचिस’ और गाना था ‘छोड़ आये हम वो गलियां..’ बर्फ़ीली वादियों, पहाड़ों से टकराती उसकी आवाज़ मानो अपनी मज़बूत आमद की गवाही दे रही हो। ये मत भूलिए कि इस गाने में केके के अलावा सुरेश वाडकर और हरिहरण जैसे धुरन्धर गायक भी थे, लेकिन याद रह जाते हैं बस केके। इसी बरस केके ने एआर रहमान की कंपोज़िशन का एक डब वर्शन गाया था, ‘हैल्लो डॉक्टर दिल की चोरी हो गयी’ ज़ाहिर है वक़्त की रेस में ये गाना पीछे छूट गया, मगर अपने टाइम पर ये गाना स्कूली बच्चों की ज़ुबान पर जमा हुआ था।
केके को असल में स्टारडम, कामयाबी और मकबूलियत मिली इस्माइल दरबार का साथ मिलने से। संजय लीला भंसाली की फ़िल्म ‘ हम दिल दे चुके सनम’ में उन्होंने दो गाने गाए थे, पहला ‘कायपोचे’ और दूसरा, ‘तड़प तड़प के इस दिल से’। इनमें से दूसरा गाना तो बिना किसी शक के केके के जीवन का सर्वश्रेष्ठ गीत था। इस एक गीत के बनने की कहानी इसे हिंदी फ़िल्मों के सबसे चर्चित हुए गानों में शुमार करती है। ये कहानी भंसाली की बेचैनी, इस्माइल की खीझ और केके की उम्मीदों को सामने रखती है।
साल 1999 केके के लिए वाकई में कमाल का साल था। प्लेबैक में पहचान मिल ही रही थी और पॉप म्यूजिक की दुनिया में भी वो अपनी जगह बना चुके थे। ‘पल’ जैसे एलबम ने उनकी लोकप्रियता को गली-गली तक पहुंचा दिया। इसी एलबम का गाना ‘याद आएंगे ये पल’ दोस्तों-यारों के बिछड़ने, अलविदा कहने का एंथम बन गया। और फिर उनके मेन्टर रहे लेस्ली लुइस की कम्पोज़िशन में ‘रॉकफोर्ड’ का एक गाना आया ‘यारों दोस्ती बड़ी ही हसीन है’ और इसके बाद कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं रह जाती।
उनका अगला बेमिसाल गाना आया हैरिस जयराज के म्यूजिक डायरेक्शन में। फ़िल्म ‘रहना है तेरे दिल में’ के सबसे हिट गाने ‘सच कह रहा है दीवाना’ को गाते हुए केके ने.. माधवन के किरदार को आवाज़ और जज़्बात दोनों ही एक साथ दे दिए। आज भी टूटे दिल पर किसी मरहम की तरह महसूस होता है ये गाना।
केके की आवाज़ की एक बड़ी ख़ूबी ये थी कि वो बहुत से गायकों के बीच में भी अलग से प्रभाव पैदा करती थी। एक उदाहरण यहां एआर रहमान की कम्पोज़िशन का लिया जा सकता है। ‘साथिया’ का बड़ा पॉपुलर गाना है, ‘ओ हमदम सुनियो रे..’ अब इस गाने में जो आवाज़ें हैं उन्हें गिनिए.. कुणाल गांजावाला, शान, केके और प्रवीण मानी.. साथ ही कोरस में और कुछ लोग हैं। इस गाने में एक जगह एक लाइन है.. ‘धीम धीम तानाना.. धीम ताना नाना ओओओ नीम के पेड़ से…’ अब ये जो ‘नीम के पेड़ से’ कहने के बाद कहीं पीछे से बहुत हल्के से खींची हुई तान सुनाई पड़ती है.. ये केके की आवाज़ है और यही गायकी का माधुर्य है। इस गीत का सर्वश्रेष्ठ लम्हा बस वही हल्की खींची हुई तान है। कभी सुनियेगा.. मज़ा आ जायेगा।
एक समय पर विशेष फिल्म्स के बैनर तले बनने वाली फ़िल्मों में केके की आवाज़ का जमकर इस्तेमाल हुआ। महेश भट्ट रचित किरदार, जो कि छद्म अध्यात्म और ओढ़ी हुई बौद्धिकता के बीच फँसकर समझ से बाहर हो जाते हैं, उनके लिए केके ने कमाल के गाने गाए। ‘जिस्म’ का ‘आवारापन बंजारापन’ इसी ख़ला को बयां करता है। ऐसे ही ‘साया’ में मर चुकी पत्नी की रूह को महसूस करने वाले किरदार के लिए उन्होंने गाया ‘कभी खुशबू कभी झोंका कभी हवा सा लगे.. जुदा होकर भी तू मुझसे जुड़ा जुड़ा से लगे..’ इस के अंतरों में केके अपनी रेंज और वर्सटैलिटी से खेल जाते हैं। सुनने वालों को वो बहुत ऊँचे ले जाते हैं और फिर आहिस्ता से पटक देते हैं। आप मंत्रमुग्ध हुए बिना नहीं रह पाते। इरफ़ान की ‘रोग’ का न तो ओर था और न ही छोर.. मगर केके ने किरदार की तन्हाई को खोलकर रख दिया जब उनकी आवाज़ में गूंजा, ‘मैंने दिल से कहा ढूंढ लाना खुशी.. नासमझ लाया ग़म तो ये ग़म ही सही।’
इमरान हाशमी के लिए केके ने कुछ बड़े मशहूर गाने गाए। ‘द किलर’ का एक गाना याद आता है, ‘फिरता रहूँ दरबदर.. मिलता नहीं तेरा निशाँ..’ इसके लिरिसिस्ट जलीस शेरवानी ने बताया था कि साजिद वाजिद की ये कम्पोज़िशन बड़ी अजीब है। जब मुखड़ा शुरू होता है तो कहीं ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेता। आप केके की आवाज़ में इस मुश्किल गाने को सुनिए.. आपको पता ही नहीं चलेगा कि ये तकनीकी तौर पर बड़ा ग़लत और मुश्किल गाना है। केके मुश्किल कम्पोज़िशन को बड़ी आसानी से अपनी आवाज़ में घोल लेते थे। उनके कई समकालीनों में सिर्फ़ मोहित चौहान के पास ही ये कला है।
इसमें कोई शक़ नहीं कि प्रीतम ने केके का सबसे बेहतर इस्तेमाल किया है, लेकिन एआर रहमान, शंकर एहसान लॉय और अनु मलिक ने भी अपनी कुछ मुश्किल और बेहतरीन धुनों के लिए केके को याद किया। केके नए मिलेनियम की आवाज़ थे, जिसमें सुनहरे ख़्वाब और उम्मीदों का बांध खड़ा था। नए मिलेनियम के इस दूसरे दशक तक वो ख़्वाब भी टूटे.. उम्मीदें भी और अब केके भी नहीं रहे। उम्र के आख़िरी हिस्से तक जवानी की यादें बनी रहेंगी और बनी रहेंगी केके की आवाज़ भी।